हम खुश हैं. हैदराबाद में जन्मे सत्या नडेला महीने भर पहले ही दुनिया की दिग्गज सॉफ्टवेयर कंपनी माइक्रोसॉफ्ट के चेयरमैन बने हैं. हमारी खुशी तब और भी बढ़ गई जब पता चला कि जिस इंस्टेंट मैसेजिंग सर्विस व्हॉट्स एप को फेसबुक ने 19 बिलियन डॉलर में खरीदा है उसके पीछे भी कोई इंडियन ब्रेन है. आईआईटी दिल्ली के एल्यूमिनाई नीरज अरोड़ा जिन्हें कंपनी की बिजनेस स्ट्रैटेजी के पीछे का दिमाग माना जाता है.
सिलिकन वैली में हिंदुस्तानी लगातार कामयाबी का रंग बिखेरते रहे हैं. पिछली होली के मौके पर गूगल ने चेन्नई में जन्मे सुंदर पिच्चै को अपने एंड्रायड डिवीजन की कमान सौंपी थी. 2013 की तीसरी तिमाही में दुनिया भर में जितने स्मार्टफोन बिके उनमें से 81 परसेंट इसी ऑपरेटिंग सिस्टम पर रन होते हैं. आईआईटी खड़गपुर का यह एल्यूमिनाई माइक्रोसॉफ्ट का सीईओ बनने की रेस में भी शामिल था.
आइए एक और नाम का जिक्र कर लेते हैं. साल 2013, अप्रेल का महीना रहा होगा टि्वटर को किसी ऐसे शख्स की तलाश थी जो उसकी बिजनेस स्ट्रैटेजी में रंग भर सके. हवा में गूगल के वाइस प्रेसीडेंट नील मोहन का नाम तैर रहा था. ऐसे में गूगल ने उन्हें 100 मिलियन डॉलर का ऑफर देकर रोक लिया. उनके कंधों पर कंपनी के 7 बिलियन डॉलर की सालाना आमदनी वाले डिस्प्ले एड की जिम्मेदारी जो है. कमाल की बात यह है कि नीरज अरोड़ा जहां व्हाट्स एप को एड फ्री बनाए रखने के लिए जाने जाते हैं वहीं नील मोहन गूगल पर डिस्प्ले एडवरटाइजिंग के लिए. एक नार्थ पोल तो दूसरा साउथ पोल.
इन सबकी खुशी में हमारा खुश होना लाजिमी है. आखिर उन्होंने परदेस में नाम और दाम दोनों कमाए हैं. सिलिकन वैली में इंडियन टैलेंट को पहचान दिलाई है. चलिए वतन लौटते हैं. जिन इनोवेशन के रंगों से इंडियंस ने बाहर न जाने कितनी कंपनियों का कायापलट किया है उसी इनोवेशन में इंडिया कहां ठहरता है. कभी गौर से ग्लोबल इनोवेशन इंडेक्स पर नजर डालिएगा. यहां 142 देशों की लिस्ट में हमारा नंबर 66वां है. पॉलिटिकल स्टेबेलिटी, ईज ऑफ बिजनेस, टीचर स्टूडेंट रेशियो, स्कूल लाइफ एक्सपेक्टेंसी और नॉलेज एब्जॉर्ब करने जैसे मानकों पर हमारी रैंक सौ के पार है.
ऐसे में सवाल तो होगा विदेशों में कामयाब इंडियन उसे इंडिया में क्यों नहीं दोहरा पाते या दोहराने की कोशिश ही नहीं करते. इंडियन सोसाइटी ने जाने अनजाने कैसा इकोसिस्टम बनाया है. जिसमें इनोवेशन और क्रिएटिविटी के रंगों के लिए जगह ही नहीं है. इस सबके बीच भी कुछ लोग अगर कोई कोना तलाश कर रंग डाल भी देते हैं तो उन्हें सपोर्ट कम और क्रिटिसिजम ज्यादा मिलता है. कहीं ऐसा तो नहीं हमें रिस्क लेने से डर लगता है. आखिरकार गूगल, टि्वटर और फेसबुक जैसी कंपनियों में रिस्क तो किसी और का ही है. शायद यही वजह है कि इंडिया गुड्स और सर्विसेज से ज्यादा टैलेंट एक्सपोर्ट करता है. उसकी खुद की पहचान दुनिया के बैक ऑफिस के तौर पर सिमट कर रह गई है. कट, कॉपी, पेस्ट की फिलॉसफी में यकीन करने से काम नहीं चलने वाला यह जानते हुए भी काम चलाया जा रहा है.
मन में कहीं यह बात धर कर गई रंगों से कुछ नया क्यों करना पुराना ही ठीक है. रिसर्च एंड डेवलपमेंट पर इंडिया में होने वाले खर्च पर नजर डाल लीजिए असल तस्वीर खुद ब खुद सामने आ जाएगी. एक अनुमान के मुताबिक 2014 में अपने देश में रिसर्च एंड डेवलपमेंट पर जीडीपी का 0.9 परसेंट खर्च होगा, तकरीबन 44 बिलियन अमरीकी डॉलर. अब यहां चाइना के बिना बात अधूरी रह जाएगी. हमारा पड़ोसी अपनी जीडीपी का 2 परसेंट आर एंड डी पर खर्च करेगा जो लगभग 284 बिलियन अमरीकी डॉलर होगा. इन सबसे आगे यूएसए 465 बिलियन अमरीकी डॉलर खर्च करने जा रहा है.
बहरहाल खुश तो हर हाल में रहना चाहिए. खुशी चाहे किसी की भी हो बांटने से बढ़ती ही है. हालांकि जब खुशी का मौका अपने घर में हो तो उसका रंग जरा और चटख होता
आईनेक्स्ट में दिनांक 15 मार्च, 2014 को प्रकाशित
http://inextepaper.jagran.com/243193/INext-Kanpur/15.03.14#page/11/1
सिलिकन वैली में हिंदुस्तानी लगातार कामयाबी का रंग बिखेरते रहे हैं. पिछली होली के मौके पर गूगल ने चेन्नई में जन्मे सुंदर पिच्चै को अपने एंड्रायड डिवीजन की कमान सौंपी थी. 2013 की तीसरी तिमाही में दुनिया भर में जितने स्मार्टफोन बिके उनमें से 81 परसेंट इसी ऑपरेटिंग सिस्टम पर रन होते हैं. आईआईटी खड़गपुर का यह एल्यूमिनाई माइक्रोसॉफ्ट का सीईओ बनने की रेस में भी शामिल था.
आइए एक और नाम का जिक्र कर लेते हैं. साल 2013, अप्रेल का महीना रहा होगा टि्वटर को किसी ऐसे शख्स की तलाश थी जो उसकी बिजनेस स्ट्रैटेजी में रंग भर सके. हवा में गूगल के वाइस प्रेसीडेंट नील मोहन का नाम तैर रहा था. ऐसे में गूगल ने उन्हें 100 मिलियन डॉलर का ऑफर देकर रोक लिया. उनके कंधों पर कंपनी के 7 बिलियन डॉलर की सालाना आमदनी वाले डिस्प्ले एड की जिम्मेदारी जो है. कमाल की बात यह है कि नीरज अरोड़ा जहां व्हाट्स एप को एड फ्री बनाए रखने के लिए जाने जाते हैं वहीं नील मोहन गूगल पर डिस्प्ले एडवरटाइजिंग के लिए. एक नार्थ पोल तो दूसरा साउथ पोल.
इन सबकी खुशी में हमारा खुश होना लाजिमी है. आखिर उन्होंने परदेस में नाम और दाम दोनों कमाए हैं. सिलिकन वैली में इंडियन टैलेंट को पहचान दिलाई है. चलिए वतन लौटते हैं. जिन इनोवेशन के रंगों से इंडियंस ने बाहर न जाने कितनी कंपनियों का कायापलट किया है उसी इनोवेशन में इंडिया कहां ठहरता है. कभी गौर से ग्लोबल इनोवेशन इंडेक्स पर नजर डालिएगा. यहां 142 देशों की लिस्ट में हमारा नंबर 66वां है. पॉलिटिकल स्टेबेलिटी, ईज ऑफ बिजनेस, टीचर स्टूडेंट रेशियो, स्कूल लाइफ एक्सपेक्टेंसी और नॉलेज एब्जॉर्ब करने जैसे मानकों पर हमारी रैंक सौ के पार है.
ऐसे में सवाल तो होगा विदेशों में कामयाब इंडियन उसे इंडिया में क्यों नहीं दोहरा पाते या दोहराने की कोशिश ही नहीं करते. इंडियन सोसाइटी ने जाने अनजाने कैसा इकोसिस्टम बनाया है. जिसमें इनोवेशन और क्रिएटिविटी के रंगों के लिए जगह ही नहीं है. इस सबके बीच भी कुछ लोग अगर कोई कोना तलाश कर रंग डाल भी देते हैं तो उन्हें सपोर्ट कम और क्रिटिसिजम ज्यादा मिलता है. कहीं ऐसा तो नहीं हमें रिस्क लेने से डर लगता है. आखिरकार गूगल, टि्वटर और फेसबुक जैसी कंपनियों में रिस्क तो किसी और का ही है. शायद यही वजह है कि इंडिया गुड्स और सर्विसेज से ज्यादा टैलेंट एक्सपोर्ट करता है. उसकी खुद की पहचान दुनिया के बैक ऑफिस के तौर पर सिमट कर रह गई है. कट, कॉपी, पेस्ट की फिलॉसफी में यकीन करने से काम नहीं चलने वाला यह जानते हुए भी काम चलाया जा रहा है.
मन में कहीं यह बात धर कर गई रंगों से कुछ नया क्यों करना पुराना ही ठीक है. रिसर्च एंड डेवलपमेंट पर इंडिया में होने वाले खर्च पर नजर डाल लीजिए असल तस्वीर खुद ब खुद सामने आ जाएगी. एक अनुमान के मुताबिक 2014 में अपने देश में रिसर्च एंड डेवलपमेंट पर जीडीपी का 0.9 परसेंट खर्च होगा, तकरीबन 44 बिलियन अमरीकी डॉलर. अब यहां चाइना के बिना बात अधूरी रह जाएगी. हमारा पड़ोसी अपनी जीडीपी का 2 परसेंट आर एंड डी पर खर्च करेगा जो लगभग 284 बिलियन अमरीकी डॉलर होगा. इन सबसे आगे यूएसए 465 बिलियन अमरीकी डॉलर खर्च करने जा रहा है.
बहरहाल खुश तो हर हाल में रहना चाहिए. खुशी चाहे किसी की भी हो बांटने से बढ़ती ही है. हालांकि जब खुशी का मौका अपने घर में हो तो उसका रंग जरा और चटख होता
आईनेक्स्ट में दिनांक 15 मार्च, 2014 को प्रकाशित
http://inextepaper.jagran.com/243193/INext-Kanpur/15.03.14#page/11/1
टिप्पणियाँ
एक टिप्पणी भेजें