उनकी क्लास शुरू ही हुई थी। वे मोर पंख के रंगों का जिक्र कर रहे थे। तभी उनकी आवाज मेरे कानों से टकराई, ‘यहां भी आ गए’। यह चोरी पकड़े जाने जैसा था। वे मुस्कुारा रहे थे। अण्णा यूनिवर्सिटी, चेन्नई के उस क्लासरूम में मेरे सामने हाथ में डस्टर लिए पूर्व राष्ट्र्पति डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम खड़े थे। दिन भर में दूसरी बार उनसे मेरा आमना-सामना हो रहा था। एक दिन पहले ही उन्होंने दिल्ली में राष्ट्रपति पद की जिम्मेदारी किसी और को सौंपी थी। अगले ही दिन चेन्नई में वह टीचर की भूमिका में थे। ठीक से याद है जुलाई का ही महीना था। सामने ब्लैक बोर्ड पर अपने हाथों से उन्होंने कुछ आकृतियां उकेरी थी। ऐसा करते समय वह किसी जादूगर सरीखे लग रहे थे। वह नैनो टेक्नोलॉजी के बारे में बता रहे थे। हम सबको पहले ही उनकी सख्त हिदायत मिल चुकी थी। उन्हें पूर्व राष्ट्रपति नहीं अण्णा यूनिवर्सिटी का प्रोफेसर कहकर संबोधित किया जाए। क्लासरूम के बाहर फोटोग्राफरों की भीड़ पूर्व राष्ट्रपति को पढ़ाते हुए अपने कैमरे में कैद करने को बेताब थी। अंदर प्रोफेसर कलाम पढ़ा रहे थे। आखिरकार फोटोग्राफरों को चंद पलों के लिए ही सही अंदर आने की इजाजत म
तेजी से डिजिटल होती दुनिया में डिजिटल डिवाइड के इस पार भी एक दुनिया है