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जुलाई, 2015 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

'एक्‍स प्रेसिडेंट' नहीं 'अण्‍णा यूनिवर्सिटी का प्रोफेसर' कहो APJ कलाम को

उनकी क्लास शुरू ही हुई थी। वे मोर पंख के रंगों का जिक्र कर रहे थे। तभी उनकी आवाज मेरे कानों से टकराई, ‘यहां भी आ गए’। यह चोरी पकड़े जाने जैसा था। वे मुस्कुारा रहे थे। अण्णा यूनिवर्सिटी, चेन्नई के उस क्लासरूम में मेरे सामने हाथ में डस्टर लिए पूर्व राष्ट्र्पति डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम खड़े थे। दिन भर में दूसरी बार उनसे मेरा आमना-सामना हो रहा था। एक दिन पहले ही उन्होंने दिल्ली में राष्ट्रपति पद की जिम्मेदारी किसी और को सौंपी थी। अगले ही दिन चेन्नई में वह टीचर की भूमिका में थे। ठीक से याद है जुलाई का ही महीना था। सामने ब्लैक बोर्ड पर अपने हाथों से उन्होंने कुछ आकृतियां उकेरी थी। ऐसा करते समय वह किसी जादूगर सरीखे लग रहे थे। वह नैनो टेक्नोलॉजी के बारे में बता रहे थे। हम सबको पहले ही उनकी सख्त हिदायत मिल चुकी थी। उन्हें पूर्व राष्ट्रपति नहीं अण्णा यूनिवर्सिटी का प्रोफेसर कहकर संबोधित किया जाए। क्लासरूम के बाहर फोटोग्राफरों की भीड़ पूर्व राष्ट्रपति को पढ़ाते हुए अपने कैमरे में कैद करने को बेताब थी। अंदर प्रोफेसर कलाम पढ़ा रहे थे। आखिरकार फोटोग्राफरों को चंद पलों के लिए ही सही अंदर आने की इजाजत म

ट्रेन के डिब्‍बे में चढ़ने तो दीजिए

मुंबई की पहचान बन चुकी काले और पीले रंग वाली टैक्सियों के ड्राइवर पिछले दिनों हड़ताल पर थे. वजह जानकर आपको हैरानी होगी. वह मोबाइल एप आधारित उबर, ओला, मेरू कैब जैसी टैक्सी सेवाओं पर रोक लगाने की मांग कर रहे हैं. देश में ऑनलाइन सेवाओं का दायरा बढ़ने के साथ ऑनलाइन व ऑफलाइन सेवाओं के बीच टकराव भी बढ़ रहा है. यह पहला वाकया नहीं है. पिछले साल दिसम्बर में राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी की चर्चित किताब ‘द ड्रामैटिक डिकेड: द इंदिरा गांधी इयर्स’ के साथ भी कुछ ऐसा ही हो चुका है. पब्लिशर के पहले 21 दिनों तक किताब की बिक्री सिर्फ ऑनलाइन करने का फैसला बुक स्टोर्स को रास नहीं आया था. विरोध में उन्होंने बायकॉट तक की धमकी दे डाली थी. याद दिलाते चलें कि ई-कॉमर्स के वर्तमान दिग्गजों ने शुरुआत ऑनलाइन किताबें बेचने से ही की थी. यह जंग सिर्फ किताबों और टैक्सियों तक सीमित नहीं रह गई है. ऐसा भी नहीं है कि हर जगह ऑफलाइन को हार का सामना करना पड़ा हो. पिछले साल फेस्टिव सीजन से ठीक पहले मोबाइल रिटेलर्स के दबाव में सैमसंग ने स्मार्टफोन के अपने 48 मॉडल ऑनलाइन न बेचने का फैसला लिया था. यह फैसला ऐसे समय में आया था जब

एक किसान की मौत, दिल्‍ली में...

अब दिल्‍ली ही देश है. यहां एक किसान की मौत ने राजनीति की जमीन हिला दी. वरना गांव में किसानों की मौत महज एक आंकड़ा भर है. दिल्‍ली में खबर है, जो फेसबुक, टि्वटर, लिंक्‍डइन पर हैशटैग बन जाती है. गजेंद्र की मौत से पता चल गया है कि भारत के किसानों की आवाज नक्‍कारखाने में तूती की तरह है. यह आवाज तभी सुनाई देती है, जब राजनीति के तवे पर उसे चढ़ाया जाता है या फिर कैमरे पर दिखाया जाता है. वैसे इस देश में किसानों की आत्‍महत्‍या कोई नई बात नहीं है. भारत में हर रोज 46 'गजेंद्र' (किसान) किसी न किसी वजह से मौत को गले लगाते हैं. नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्‍यूरो के आंकड़ों के मुताबिक देश में 1995 से 2013 के बीच 2,96,438  किसानों ने आत्‍महत्‍या की. हाल में आई आपदा के बाद किसानों की मौत का सिलसिला जारी है. किसानों की बद्तर हालत का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि देश में आत्‍महत्‍या करने वाले 100 लोगों में से 11 किसान होते हैं. किसी किसान की मौत पर न तो कैंडल मार्च निकलते हैं, न उनके लिए इंसाफ या नीतियां बदलने की मांग होती है. गजेंद्र की मौत की वजह बताने में लगे राजनीतिज्ञ, आज तक तीन लाख किसा