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लोग जिनके लिए न तो मोमबत्तियां जली, न ही प्राइम टाइम डिबेट का मुद्दा बने

गांधी जयंती पर कर्तव्‍य की इतिश्री  गांधी जयंती पर बापू की प्रतिमा पर फूल-माला चढ़ाकर हमने कर्तव्‍य की इतिश्री कर ली। हम में से कई ने यह टीवी पर रिचर्ड एटनबरो की 'गांधी', रजत कपूर की 'द मेकिंग ऑफ द महात्‍मा' या संजय दत्‍त की 'लगे रहो मुन्‍नाभाई' देखकर पूरा किया। जो यह नहीं कर सके उन्‍होंने फेसबुक, ट्विटर व वॉट्सएप पर महात्‍मा गांधी को याद किया। कई ने स्‍वच्‍छ भारत अभियान के बहाने ही सही झाड़ू के साथ सेल्‍फी ही ले ली। पेट्रोल-डीजल की बढ़ती कीमतों से परेशान लोगों से इससे अधिक की उम्‍मीद करना भी बेमानी है। वैसे भी जिनके विचारों से दूरी बनानी होती है हम उनकी मूर्तियां लगा देते हैं। उन्‍हें भगवान बना देते हैं। मौका पड़ने पर यह कहकर पल्‍ला झाड़ लेते हैं कि 'हम इंसान हैं' । न तो मोमबत्‍ती जली न प्राइम डिबेट का मुद्दा बने  सड़क पर खुले पड़े मैनहोल के बगल से बचकर निकलते हमें इस 'इंसानियत' का ख्‍याल नहीं ही आता है। उन चेहरों की भी याद नहीं आती जिन्‍हें अकसर हम बिना किसी सुरक्षा उपकरण नंगे बदन सीवर साफ करने के लिए उनके भीतर उतरते देखते हैं। हमें तब गा