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अक्‍लमंदों ने कौन सा दुनिया बदल ली है

हम हमेशा अपने आसपास बदलाव खोजते रहते हैं। इस उम्‍मीद में जीते रहते हैं कि आज नहीं तो कल बदलेगा। बहरहाल कई लोग खामोशी से बदलाव लेकर आ जाते हैं। हमें पता ही नहीं चलता। ऐसे लोग बदलाव लाते हैं जिनसे कोई उम्‍मीद भी नहीं लगाता। बदलाव जिसकी हम बात कर रहे होते हैं। उसे कोई और हकीकत बना रहा होता है। दिन-रात अपनी कठिनाइयों का रोना रोने वाले हम उन्‍हें जानते तक नहीं हैं। इस बार गणतंत्र दिवस पर पद्म पुरस्‍कार पाने वालों की लंबी फेहरिस्‍त में कई ऐसे नाम हैं जो बरसों से गुमनाम रहकर अपना काम करते आए हैं। गण जिनकी वजह से इस तंत्र में उम्‍मीद बाकी है। लोग जिन पर गणतंत्र को नाज है। पर्यावरण पर मंडराते खतरे पर दिन-रात पेशानी पर बल डालकर परेशानी जाहिर करने वालों में से कई ने दारिपल्‍ली रामैय्या का नाम तक नहीं सुना होगा। तेलंगाना राज्‍य के खम्‍मम जिले में हर रोज अपनी साइकिल पर मीलों चलकर बीज बिखेरते जाने वाले रामैय्या क्‍लाइमेट चेंज पर बड़ी-बड़ी बातें नहीं करते। वह सारी धरती को हरा-भरा बनाने का भारी-भरकम सपना नहीं दिखाते। वह हर रोज अपने आसपास हरियाली का दायरा बढ़ाते चले जाते हैं। एक-दो नहीं एक करोड़ पेड