हम हमेशा अपने आसपास बदलाव खोजते रहते हैं। इस उम्मीद में जीते रहते हैं कि आज नहीं तो कल बदलेगा। बहरहाल कई लोग खामोशी से बदलाव लेकर आ जाते हैं। हमें पता ही नहीं चलता। ऐसे लोग बदलाव लाते हैं जिनसे कोई उम्मीद भी नहीं लगाता। बदलाव जिसकी हम बात कर रहे होते हैं। उसे कोई और हकीकत बना रहा होता है। दिन-रात अपनी कठिनाइयों का रोना रोने वाले हम उन्हें जानते तक नहीं हैं। इस बार गणतंत्र दिवस पर पद्म पुरस्कार पाने वालों की लंबी फेहरिस्त में कई ऐसे नाम हैं जो बरसों से गुमनाम रहकर अपना काम करते आए हैं। गण जिनकी वजह से इस तंत्र में उम्मीद बाकी है। लोग जिन पर गणतंत्र को नाज है।
पर्यावरण पर मंडराते खतरे पर दिन-रात पेशानी पर बल डालकर परेशानी जाहिर करने वालों में से कई ने दारिपल्ली रामैय्या का नाम तक नहीं सुना होगा। तेलंगाना राज्य के खम्मम जिले में हर रोज अपनी साइकिल पर मीलों चलकर बीज बिखेरते जाने वाले रामैय्या क्लाइमेट चेंज पर बड़ी-बड़ी बातें नहीं करते। वह सारी धरती को हरा-भरा बनाने का भारी-भरकम सपना नहीं दिखाते। वह हर रोज अपने आसपास हरियाली का दायरा बढ़ाते चले जाते हैं। एक-दो नहीं एक करोड़ पेड़ लगाने वाले इस शख्स को लोग अब 'ट्री मैन' बुलाते हैं।
जहां हरियाली लाना रामैय्या की जिंदगी का मकसद है। वहीं कोलकाता निवासी बिपिन गनात्रा अग्निकांड में फंसे लोगों की जान बचाते हैं। कई बार खुद उनकी जान पर बन आती है। उन्होंने साल 1982 में एक अग्निकांड में अपने भाई को खो दिया था। जिसके बाद से उनकी जिंदगी का मकसद ही बदल गया। आज गनात्रा को आग में फंसे हर इंसान में अपना भाई नजर आता है। जिनकी जान बचाने को वह किसी भी हद तक चले जाते हैं। वह 'अग्निरक्षक' बन गए हैं। कोलकाता में कहीं भी आग लगे गनात्रा नजर आ जाते हैं। बचाव व राहत कार्य में खामोशी से लगे।
वहीं पश्चिम बंगाल के ही जलपाईगुड़ी जिले में चाय बागान में काम करने वाले करीमुल हक की जिंदगी का मकसद लोगों को समय पर अस्पताल पहुंचाना है। गाड़ी न होने की वजह से अपनी मां को सही समय पर अस्पताल न पहुंचा पाने वाले हक किसी और के साथ ऐसा नहीं होने देना चाहते। इसलिए उन्होंने अपनी बाइक को ही एंबुलेंस बना दिया है। जिस पर लोगों को अस्पताल पहुंचाकर वह 3000 लोगों की जान बचा चुके हैं। स्थानीय लोगों ने प्यार से उनका नाम ही 'एंबुलेंस दादा' रख दिया है। उनकी बाइक एंबुलेंस धालाबारी के आसपास 20 गांवों की लाइफलाइन बन चुकी है।
वहीं वडोदरा, गुजरात निवासी डा. सुब्रत दास को अपनी जिंदगी का मकसद तब मिला जब वह खुद एक कार दुर्घटना का शिकार हो गए। उन तक मदद पहुंचने में पांच घंटे लगे। जान बच गई लेकिन हादसे ने उन्हें सोचने पर मजबूर कर दिया। जिसका नतीजा लाइफलाइन फांउडेशन के रूप में सामने आया। आज 5 राज्यों के 4000 किमी लंबे हाईवे पर उनका नेटवर्क दुर्घटना के शिकार लोगों तक 40 मिनट के भीतर पहुंचता है। जिसके चलते अब तक 1200 से अधिक लोगों की जान बची है।
सूखा प्रभावित बनासकांठा जिले को दिव्यांग किसान जेनाभाई दरगाभाई पटेल ने अनार उत्पादन में देश का अग्रणी जनपद बना दिया है। वहीं इंजीनियर गिरीश भारद्वाज कम कीमत वाले इको फ्रेंडली सस्पेंशन ब्रिज बनाकर दूरदराज ग्रामीण इलाकों को मुख्यधारा से जोड़ने में लगे हैं। तेलंगाना के चिंताकिंदी मल्लेशम की बनाई लक्ष्मी एएसयू मशीन पोचमपल्ली सिल्क साड़ी बनाने वाले बुनकरों की जिंदगी आसान बना रही है। वहीं 76 बरस की हो चुकी केरल की मीनाक्षी अम्मा अपने स्टूडेंट्स को सदियों पुरानी मार्शल आर्ट कलरियपट्टू सिखाने व बचाने में लगी हैं।
यह लोग हमारी आपकी तरह मुश्किलों का रोना नहीं रोते। वह कठिनाइयों का हल खोजने में यकीन करने वाले हैं। उन्होंने अपने निजी जीवन के कटु अनुभवों से हार नहीं मानी। उनसे प्रेरणा लेकर वक्त का रुख मोड़ दिया।
हम में से कई लोगों को उनका यह जुनून पागलपन सरीखा लगेगा। वैसे यह ठीक ही है अक्लमंदों ने कौन सा दुनिया बदल ली है। हालात को कोसने या हवाई किले बनाने से बदलाव नहीं आया करता। उसे लाने के लिए लगातार काम करना होता है। बिना निराश हुए बिना रूके।
कई बार ऐसे भी क्षण आते हैं जब लगता है कि हम कर ही क्या सकते हैं। जबकि रामैय्या जैसे लोगों का उदाहरण बताता है कि हम क्या नहीं कर सकते। लोग अकसर कहते हैं कि हम यह होते तो वह कर देते। अरे जनाब, आप जो हैं वही ठीक से कर दीजिए। बाकी काम अपने आप हो जाएगा। हम में से हर कोई जैसा भी जहां भी है वहीं छोटे बदलावों से शुरुआत कर बड़े बदलाव का वाहक बन सकता है।
यह ढेरों उदाहरणों में से चंद लोगों की कहानियां हैं। देश भर में न जाने कितने लोग खामोशी से चुपचाप दुनिया बदलने में लगे हैं। दुनिया को बर्बाद करने वालों पर जितना वक्त जाया होता है उसका एक हिस्सा इन लोगों पर खर्च कीजिए। तब हम अपने आसपास को नाउम्मीद होकर नहीं उम्मीद से भरकर देखेंगे। अगर इतना भी हो सका तो समझ लीजिएगा आपकी जिंदगी में कुछ बदल गया है।
आई नेक्स्ट में दिनांक 29 जनवरी को प्रकाशित
http://inextepaper.jagran.com/1086735/INext-Kanpur/29-01-17#page/11/1
पर्यावरण पर मंडराते खतरे पर दिन-रात पेशानी पर बल डालकर परेशानी जाहिर करने वालों में से कई ने दारिपल्ली रामैय्या का नाम तक नहीं सुना होगा। तेलंगाना राज्य के खम्मम जिले में हर रोज अपनी साइकिल पर मीलों चलकर बीज बिखेरते जाने वाले रामैय्या क्लाइमेट चेंज पर बड़ी-बड़ी बातें नहीं करते। वह सारी धरती को हरा-भरा बनाने का भारी-भरकम सपना नहीं दिखाते। वह हर रोज अपने आसपास हरियाली का दायरा बढ़ाते चले जाते हैं। एक-दो नहीं एक करोड़ पेड़ लगाने वाले इस शख्स को लोग अब 'ट्री मैन' बुलाते हैं।
जहां हरियाली लाना रामैय्या की जिंदगी का मकसद है। वहीं कोलकाता निवासी बिपिन गनात्रा अग्निकांड में फंसे लोगों की जान बचाते हैं। कई बार खुद उनकी जान पर बन आती है। उन्होंने साल 1982 में एक अग्निकांड में अपने भाई को खो दिया था। जिसके बाद से उनकी जिंदगी का मकसद ही बदल गया। आज गनात्रा को आग में फंसे हर इंसान में अपना भाई नजर आता है। जिनकी जान बचाने को वह किसी भी हद तक चले जाते हैं। वह 'अग्निरक्षक' बन गए हैं। कोलकाता में कहीं भी आग लगे गनात्रा नजर आ जाते हैं। बचाव व राहत कार्य में खामोशी से लगे।
वहीं पश्चिम बंगाल के ही जलपाईगुड़ी जिले में चाय बागान में काम करने वाले करीमुल हक की जिंदगी का मकसद लोगों को समय पर अस्पताल पहुंचाना है। गाड़ी न होने की वजह से अपनी मां को सही समय पर अस्पताल न पहुंचा पाने वाले हक किसी और के साथ ऐसा नहीं होने देना चाहते। इसलिए उन्होंने अपनी बाइक को ही एंबुलेंस बना दिया है। जिस पर लोगों को अस्पताल पहुंचाकर वह 3000 लोगों की जान बचा चुके हैं। स्थानीय लोगों ने प्यार से उनका नाम ही 'एंबुलेंस दादा' रख दिया है। उनकी बाइक एंबुलेंस धालाबारी के आसपास 20 गांवों की लाइफलाइन बन चुकी है।
वहीं वडोदरा, गुजरात निवासी डा. सुब्रत दास को अपनी जिंदगी का मकसद तब मिला जब वह खुद एक कार दुर्घटना का शिकार हो गए। उन तक मदद पहुंचने में पांच घंटे लगे। जान बच गई लेकिन हादसे ने उन्हें सोचने पर मजबूर कर दिया। जिसका नतीजा लाइफलाइन फांउडेशन के रूप में सामने आया। आज 5 राज्यों के 4000 किमी लंबे हाईवे पर उनका नेटवर्क दुर्घटना के शिकार लोगों तक 40 मिनट के भीतर पहुंचता है। जिसके चलते अब तक 1200 से अधिक लोगों की जान बची है।
सूखा प्रभावित बनासकांठा जिले को दिव्यांग किसान जेनाभाई दरगाभाई पटेल ने अनार उत्पादन में देश का अग्रणी जनपद बना दिया है। वहीं इंजीनियर गिरीश भारद्वाज कम कीमत वाले इको फ्रेंडली सस्पेंशन ब्रिज बनाकर दूरदराज ग्रामीण इलाकों को मुख्यधारा से जोड़ने में लगे हैं। तेलंगाना के चिंताकिंदी मल्लेशम की बनाई लक्ष्मी एएसयू मशीन पोचमपल्ली सिल्क साड़ी बनाने वाले बुनकरों की जिंदगी आसान बना रही है। वहीं 76 बरस की हो चुकी केरल की मीनाक्षी अम्मा अपने स्टूडेंट्स को सदियों पुरानी मार्शल आर्ट कलरियपट्टू सिखाने व बचाने में लगी हैं।
यह लोग हमारी आपकी तरह मुश्किलों का रोना नहीं रोते। वह कठिनाइयों का हल खोजने में यकीन करने वाले हैं। उन्होंने अपने निजी जीवन के कटु अनुभवों से हार नहीं मानी। उनसे प्रेरणा लेकर वक्त का रुख मोड़ दिया।
हम में से कई लोगों को उनका यह जुनून पागलपन सरीखा लगेगा। वैसे यह ठीक ही है अक्लमंदों ने कौन सा दुनिया बदल ली है। हालात को कोसने या हवाई किले बनाने से बदलाव नहीं आया करता। उसे लाने के लिए लगातार काम करना होता है। बिना निराश हुए बिना रूके।
कई बार ऐसे भी क्षण आते हैं जब लगता है कि हम कर ही क्या सकते हैं। जबकि रामैय्या जैसे लोगों का उदाहरण बताता है कि हम क्या नहीं कर सकते। लोग अकसर कहते हैं कि हम यह होते तो वह कर देते। अरे जनाब, आप जो हैं वही ठीक से कर दीजिए। बाकी काम अपने आप हो जाएगा। हम में से हर कोई जैसा भी जहां भी है वहीं छोटे बदलावों से शुरुआत कर बड़े बदलाव का वाहक बन सकता है।
यह ढेरों उदाहरणों में से चंद लोगों की कहानियां हैं। देश भर में न जाने कितने लोग खामोशी से चुपचाप दुनिया बदलने में लगे हैं। दुनिया को बर्बाद करने वालों पर जितना वक्त जाया होता है उसका एक हिस्सा इन लोगों पर खर्च कीजिए। तब हम अपने आसपास को नाउम्मीद होकर नहीं उम्मीद से भरकर देखेंगे। अगर इतना भी हो सका तो समझ लीजिएगा आपकी जिंदगी में कुछ बदल गया है।
आई नेक्स्ट में दिनांक 29 जनवरी को प्रकाशित
http://inextepaper.jagran.com/1086735/INext-Kanpur/29-01-17#page/11/1
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