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जिसकी लाठी उसकी भैंस, ये है गांधी का देश

मजबूरी का नाम कब महात्‍मा गांधी हो गया पता ही नहीं चला। आजादी के बाद गांधी दिल से निकलकर जेब में रखे बटुए में समा गए। गांधी , कौन ? यह कहकर दिमाग पर जोर न देना पड़े। इसलिए नेताओं ने गली , चौराहों पर उनकी मूर्तिया लगवा दीं। बहरहाल अब उनके लगने का सिलसिला भी थम गया है। गांधी का कभी किसी बैंक में खाता रहा पता नहीं यह तय है कि उनका कोई वोट बैंक नहीं है। मूर्तियों पर 2 अक्‍टूबर को होने वाले सालाना जलसे में फूल-मालायें चढ़ जाती हैं। पहले मुन्‍नाभाई को गांधी की जरूरत पड़ा करती रही होगी। अब लोगों के जेहन में बने रहने के लिए उन्‍हें मुन्‍नाभाई की जरूरत है। उनकी मूर्तियों पर जमा धूल शायद स्‍वच्‍छ भारत अभियान में साफ हो जाए। उनके विचारों पर धूल की परत साल दर साल जमती जा रही है। महात्‍मा गांधी के बारे में महान वैज्ञानिक अल्‍बर्ट आइंस्‍टीन ने कभी कहा था कि आने वाली पीढ़ियां कभी यकीन नहीं करेंगी कि हाड़ मांस का यह इंसान कभी धरती पर रहा होगा। अब हम आइंस्‍टीन को गलत कैसे साबित होने दे सकते हैं। पहले हमने गांधी को भगवान बनाया फिर उनसे पल्‍ला झाड़ लिया। अब भगवान सा काम इंसान भला कैसे कर सकता है। उस