सीधे मुख्य सामग्री पर जाएं

संदेश

जुलाई, 2017 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

इंसान EQ माप रहा है, मशीनें IQ सुधार रही हैं

इंसानों से न सही मशीनों से हमारा रिश्‍ता गहरा हो रहा है। वह दिन दूर नहीं जब महान वैज्ञानिक अल्‍बर्ट आइंस्‍टीन की जगह मशीनों के आईक्‍यू (बौद्धिक स्‍तर) पर बात होगी। इंसान इक्‍यू (भावनात्‍मक स्‍तर) माप रहा है, वहीं मशीनें आईक्‍यू सुधार रही हैं। इंसान उन्‍हें इंटेलीजेंट बनाने में लगे हैं। ओरिजिनल की तलाश छोड़ दुनिया आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस (एआई) पर बहस-मुबाहिसा में उलझ चुकी है। इसमें स्‍टीफन हाकिंग से लेकर बिल गेट्स तक शामिल हैं। सिलिकन वैली से लेकर बंगलुरू तक एआई की आहट सिर्फ सुनी नहीं महसूस की जा सकती है। अभी तक दो चीजें हम इंसानों को मशीनों से अलग करती आई हैं। सीखने व समस्‍याओं को सुलझाने की काबिलियत। अगर मशीनें इस काबिल बन गईं तो दुनिया कहीं इधर से उधर तो नहीं हो जाएगी? फिलहाल ऐसा होता तो नहीं लगता। बहरहाल ऐसे ढेरों सवाल हैं जिनका जवाब एआई के उभार के साथ खोजना लाजिमी हो जाएगा। कोई नौकरियों पर मंडराता खतरा देख रहा है। तो किसी को सामाजिक ताने-बाने के तहस-नहस हो जाने का डर है। हालांकि ऐसे भी लोग हैं जिन्‍हें एआई में तमाम मुश्‍किलों का हल नजर आ रहा है। बीमारियों से लेकर गरीबी तक जि