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इंसान EQ माप रहा है, मशीनें IQ सुधार रही हैं

इंसानों से न सही मशीनों से हमारा रिश्‍ता गहरा हो रहा है। वह दिन दूर नहीं जब महान वैज्ञानिक अल्‍बर्ट आइंस्‍टीन की जगह मशीनों के आईक्‍यू (बौद्धिक स्‍तर) पर बात होगी। इंसान इक्‍यू (भावनात्‍मक स्‍तर) माप रहा है, वहीं मशीनें आईक्‍यू सुधार रही हैं। इंसान उन्‍हें इंटेलीजेंट बनाने में लगे हैं। ओरिजिनल की तलाश छोड़ दुनिया आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस (एआई) पर बहस-मुबाहिसा में उलझ चुकी है। इसमें स्‍टीफन हाकिंग से लेकर बिल गेट्स तक शामिल हैं। सिलिकन वैली से लेकर बंगलुरू तक एआई की आहट सिर्फ सुनी नहीं महसूस की जा सकती है।

अभी तक दो चीजें हम इंसानों को मशीनों से अलग करती आई हैं। सीखने व समस्‍याओं को सुलझाने की काबिलियत। अगर मशीनें इस काबिल बन गईं तो दुनिया कहीं इधर से उधर तो नहीं हो जाएगी? फिलहाल ऐसा होता तो नहीं लगता। बहरहाल ऐसे ढेरों सवाल हैं जिनका जवाब एआई के उभार के साथ खोजना लाजिमी हो जाएगा।


कोई नौकरियों पर मंडराता खतरा देख रहा है। तो किसी को सामाजिक ताने-बाने के तहस-नहस हो जाने का डर है। हालांकि ऐसे भी लोग हैं जिन्‍हें एआई में तमाम मुश्‍किलों का हल नजर आ रहा है। बीमारियों से लेकर गरीबी तक जिनसे मानवता लंबे समय से जूझती आई है। मानव इतिहास इंडस्‍ट्रियल रिवॉल्‍यूशन से लेकर इंटरनेट तक तमाम बड़े बदलावों का गवाह रहा है। उसने इनके साथ तालमेल बिठाना सीख लिया। हालांकि इसके लिए उसे भारी उथल-पुथल से गुजरना पड़ा। इंटरनेट के साथ तो यह सिलसिला अभी भी जारी है।

फिलहाल आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस का असर हमारी रोजमर्रा की जिंदगी में सीमित है। समय के साथ हमारी जिंदगी में उसका दखल बढ़ेगा। गूगल की निगाह से देखें तो यह आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस व मशीन लर्निंग का लोकतांत्रिकरण होगा। बहरहाल अधिकतर लोकतांत्रिक व गैर लोकतांत्रिक देश एआई की चुनौतियों से अनजान या बेपरवाह नजर आते हैं। यह चुनौतियां सिर्फ मशीनों के इंटेलीजेंट होने से नहीं जुड़ी हैं। नई तकनीक कानूनी से लेकर सामाजिक चुनौतियां पेश करेगी।

भारत में जहां आईटी व बैंकिंग इंडस्‍ट्री में एआई आधारित ऑटोमेशन का शुरुआती असर नौकरियों पर दिख रहा है। वहीं अमेरिका में बीते बरस गूगल के ड्राइवरलेस कार सिस्‍टम को ड्राइवर के तौर पर मान्‍यता मिल गई। अमेरिका, रूस व चीन जैसे देश एआई आधारित हथियार प्रणालियों के विकास में लगे हैं। इससे दुनिया भर में हथियारों की नई होड़ शुरू हो सकती है। कृषि, चिकित्‍सा व साइबर सुरक्षा के क्षेत्र में एआई तेजी से अपनी जगह बना रही है।

सवालों की तह में जाकर जवाब खोजने से पहले समझना होगा कि हमारा सामना कैसी एआई से होगा। अभी सारा जोर किसी समस्‍या विशेष को सुलझाने में मददगार एआई के विकास पर है। जिसे हम वीक या नैरो आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस बुलाते हैं। अभी ऐसे सिस्‍टम्‍स के विकास से हम कोसों दूर हैं जो एक साथ कई समस्‍याएं सुलझा सके। यह आर्टिफिशियल जनरल इंटेलीजेंस कहलाती है। आसान शब्‍दों में कहें तो मशीन फिलहाल इंसान नहीं बनने जा रही है। हॉलीवुड की फिल्‍मों या रजनीकांत की 'रोबोट' को छोड़कर। बहरहाल नैरो इंटेलीजेंस के दम पर वह इंसानों के किए जाने वाले ढेर सारे काम करने जा रही है।

अतीत में हमने देखा है कि तकनीकी विकास का पहला व सीधा असर नौकरियों पर होता है। अभी तक यह मानकर चला जाता रहा है कि नई तकनीक जितनी नौकरियां खत्‍म करती उतनी पैदा भी करती है। भारत में आईटी इंडस्‍ट्री के विकास को इसी नजरिए से देखा जा सकता है। अभी तक मशीनें सहयोगी की भूमिका में रही हैं। बहरहाल जब किसी का सामना ऐसी मशीन से होगा जो किसी काम को उससे बेहतर ढंग से कर सकती है। तो उसके परिणाम का अनुमान लगाना मुश्‍किल है। अभी सिर्फ कयास लगाए जा सकते हैं। हालांकि ढेरों ऐसे काम हैं जिन्‍हें मशीनें निकट भविष्‍य में शायद ही कर सकें।

भारत में फिलहाल आईटी व बैंकिंग इंडस्‍ट्री का जोर वर्तमान कर्मचारियों को रिस्‍किल करने पर है। वहीं एक न्‍यूज रिपोर्ट के मुताबिक भारत में फिलहाल 170 स्‍टार्ट अप हैं जो एआई आधारित तकनीक पर काम कर रहे हैं। वह विभिन्‍न निवेशकों से 36 मिलियन डॉलर जुटा चुके हैं। उन्‍हें योग्‍य इंजीनियरों की कमी का सामना करना पड़ रहा है। फ्यूचर ऑफ लाइफ इंस्‍टीट्यूट जिसके संस्‍थापकों में स्‍काइप के को-फाउंडर जान टालिन शामिल हैं तस्‍वीर का दूसरा पहलू सामने रखती है।

इंस्‍टीट्यूट की रिपोर्ट 'आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस एंड द फ्यूचर ऑफ वर्क' में नीति निर्माताओं के सामने आने वाली चुनौतियों की झलक है। राइस यूनिवर्सिटी के कंप्‍यूटर साइंस प्रोफेसर मोशे वरदी के अनुसार, हम उम्‍मीद कर सकते हैं कि ज्‍यादातर लोगों के लिए नौकरियां होंगी। अगर इसके विपरीत स्‍थिति आती है तो सभी को फिर से लोगों की आजीविका के बारे में सोचना होगा।

तकनीक का असर लोगों ही नहीं सामाजिक ताने बाने पर भी होता है। अभी यह कहना जल्‍दबाजी होगा कि आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस परंपरागत समाज व उसकी मान्‍यताओं को किस तरह प्रभावित करेगी। संस्‍कृतियों का विकास लंबी प्रक्रिया है वहीं तकनीक तेजी से विकसित होती आई है।

मानव सभ्‍यता के विकास के क्रम में हमने देखा है कि किसी भी तकनीक का इस्‍तेमाल उसकी भलाई व नुकसान दोनों के लिए हुआ है। यह डर गैरवाजिब नहीं है कि कहीं आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस बंदर के हाथ में उस्‍तरा न साबित हो। दुनिया भर के वैज्ञानिक व रिसर्चर एआई आधारित हथियारों के विकास की होड़ शुरू होने से पहले उसे थामने की कोशिशों में जुट गए हैं। हमारा भविष्‍य इस बात पर निर्भर करता है कि किसी भी तकनीक का इस्‍तेमाल कैसे और किसलिए होने जा रहा है।

दैनिक जागरण आई नेक्‍स्‍ट में दिनांक 9 जुलाई को प्रकाशित
http://inextepaper.jagran.com/1274735/INext-Kanpur/09-07-17#page/12/1

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