ट्रैफिक ठहरा हुआ है। ठीक आगे चल रहे ट्रक के पीछे लिखा है, ओके टाटा फिर मिलेंगे। टाटा पढ़कर ख्याल आता है यूरोपीय यूनियन (ईयू) से अलग हो रहे ब्रिटेन में टाटा समूह की 19 कंपनियों की मौजूदगी है। जिनमें 60 हजार लोग काम करते हैं।
ब्रिटिश काल का वह किस्सा भी जब टाटा समूह के संस्थापक जमशेदजी टाटा को मुंबई के वाटसन होटल में एंट्री देने से मना कर दिया गया था। इसलिए कि वह यूरोपीय नहीं हैं। जिसके बाद ताज होटल की स्थापना हुई। उसी ब्रिटेन की यूरोपीय यूनियन से एग्जिट पर यकीन जरा मुश्किल है।
बहरहाल ब्रेक्जिट अब हकीकत है। जनमत संग्रह का आइडिया देने वाले ब्रिटिश पीएम डेविड कैमरन पद छोड़ने की घोषणा कर चुके हैं। किसी को ग्लोबलाइजेशन का अंत नजदीक नजर रहा है। तो कोई इसे एकीकृत यूरोप के सपने का अंत और राष्ट्रवाद की वापसी बता रहा है। बहरहाल अगर हम सतह के नीचे जाकर देखेंगे तो नई कहानी सामने आती है। इस कहानी में भारत व दक्षिण एशिया के लिए भी निहितार्थ छिपे हैं।
'ब्रेक्सिट' व 'ब्रिमेन' (ब्रिटेन के यूरोपीय यूनियन में बने रहने के समर्थकों का गढ़ा शब्द) असल में पुरानी व नई पीढ़ी के बीच की खाई की ओर इशारा करता है। यह सुनी-सुनाई बात नहीं है। जनमत संग्रह के आंकड़े इसकी गवाही देते हैं।
ब्रिटेन के युवा यूरोपीय यूनियन का हिस्सा बने रहना चाहते हैं। वहीं परिवर्तन के साथ तालमेल न बिठा पाने वाली पुरानी पीढ़ी का बड़ा हिस्सा अलग होने के पक्ष में है। इसी तरह यूरोप भर से टैलेंट व निवेश को आकर्षित करने वाले बड़े शहर जहां 'ब्रिमेन' के पक्ष में खड़े नजर आए वहीं बाकी इलाके 'ब्रेक्सिट' के साथ हो लिए।
ब्रेक्सिट के बाद के शोरशराबे में कई आवाजें अनसुनी और तथ्य दबे रह गए हैं। जनमत संग्रह के परिणामों का आयु वर्ग के हिसाब से विश्लेषण करने पर एकदम नई तस्वीर निकलकर सामने आती है। यह जानकर हैरानी हो सकती है कि 18 से 24 साल के 75 प्रतिशत युवाओं ने यूरोपीय यूनियन के पक्ष में मतदान किया है। इतना ही नहीं 25-49 वर्ष की आयु वर्ग में से 56 प्रतिशत लोग यूनियन में बने रहने के पक्ष में हैं।
फिर सवाल होगा कि अगर इतने लोग यूरोपीय यूनियन के पक्ष में तो विरोध में कौन है। ब्रिटेन के ईयू से अलग होने के पक्ष में आयु वर्ग के हिसाब से सर्वाधिक 65 या उससे अधिक वसंत देख चुके लोग हैं। 50-64 साल के 56 प्रतिशत लोग भी नहीं चाहते कि ब्रिटेन संघ का हिस्सा बना रहे। यहां कुल आबादी में 18-24 वर्ष वालों का हिस्सा लगभग सात प्रतिशत है वहीं 50 वर्ष से अधिक उम्र वालों की संख्या लगभग 24 प्रतिशत है।
इसके मायने साफ हैं कि यूरोपीय यूनियन के अस्तित्व में आने के साथ पली बढ़ी पीढ़ी ने यथार्थ को स्वीकार कर लिया है। वह यूरोप के बाकी देशों के साथ मिलकर आगे बढ़ने को तैयार है। साथ ही इसके नफा नुकसान को भी समझती है। वहीं पहले की पीढ़ी बदलावों को सहजता से स्वीकार नहीं कर पाई है। उसे लगता है कि ब्रिटेन अलग रहकर ज्यादा सुखी संपन्न होगा। बाहर से आने वाले लोग उसके हितों को नुकसान पहुंचा व डेमोग्राफिक संतुलन को बिगाड़ रहे हैं।
ईयू पर इसके असर के बारे में यूरोपीय सेंटर फॉर इंटरनेशनल पॉलिटिकल इकॉनमी के निदेशक फ्रेडरिक एरिक्शन की टिप्पणी बेहद सटीक है। उनके शब्दों में यूके की विदाई से पूरा ईयू अपने अंदर झांकने को मजबूर, ग्लोबलाइजेशन को लेकर रक्षात्मक व दुनिया के सहारे आगे बढ़ने को लेकर आत्मविश्वास में कमी महसूस करेगा। ब्रिटेन की नई पीढ़ी शायद ही यह चाहती रही होगी।
सिर्फ आयु वर्ग ही नहीं परिणामों का अलग-अलग इलाकों के आधार पर विश्लेषण करने पर भी अलग ही तस्वीर उभरती है। इंग्लैंड में रहने वाले 53 प्रतिशत मतदाता यूरोपीय यूनियन से अलग होने के पक्ष में हैं। वहीं इंग्लैंड के सबसे बड़े शहर लंदन के 60 प्रतिशत मतदाता ईयू में बने रहना चाहते हैं।
वेल्स में रह रहे 53 प्रतिशत मतदाताओं ने भी अलग होने के पक्ष में मतदान किया है। बावजूद इसके वेल्स के सबसे बड़े शहर कार्डिफ के 60 प्रतिशत मतदाता यूनियन में रहना चाहते हैं। स्कॉटलैंड व नॉर्दर्न आयरलैंड की राय भी जनमत संग्रह के अंतिम परिणाम से अलग है। स्कॉटलैंड में 62 प्रतिशत लोग यूनियन में बने रहने के पक्षधर हैं।
वहीं नार्दर्न आयरलैंड में 56 प्रतिशत लोग ऐसा ही चाहते हैं। लंदन व कार्डिफ जैसे शहरों का परिणाम बताता है कि वह दुनिया भर से टैलेंट व निवेश आकर्षित करने की अपनी क्षमता को खोना नहीं चाहते हैं। ब्रिटेन की साइंटिफिक कम्यूनिटी भी इनोवेशन के नजरिये से यथास्थिति चाहती थी।
अगर ब्रिटेन में जनमत संग्रह के परिणामों को हम दक्षिण एशिया खासकर भारत, पाकिस्तान व बांग्लादेश के संदर्भ में देखेंगे तो कई सारे कयास लगाए जा सकते हैं। भारत की 65 प्रतिशत आबादी 35 या उससे कम उम्र की है। पाकिस्तान व बांग्लादेश में भी आबादी का बड़ा हिस्सा युवा है।
जो अलग नजरिए चीजें को देख व समझ रही है। जो नई संभावनाओं का दरवाजा भी खोल सकती है। वहीं दिशा न मिलने पर मुसीबत का सबब भी बन सकती है। नई पीढ़ी परंपरागत तरीके से चीजों को देखने की बजाय उन्हें देखने का अपना नजरिया विकसित कर रही है। यह परंपरावादियों के डर का भी कारण है। उन्हें पुरानी व्यवस्था के छिन्न भिन्न होने का खतरा नजर आता है।
ब्रिटेन भले ही यूरोपीय यूनियन से अलग हो रहा है लेकिन उसके युवा अलग संकेत दे रहे हैं। ऐसे ही संकेत दुनिया भर में देखे जा सकते हैं। फिलहाल तो ब्रिटेन यूरोपीय यूनियन से यह कहकर अलग हो सकता है कि ओके टाटा फिर मिलेंगे।
आई नेक्स्ट में दिनांक 26 जून, 2016 को प्रकाशित
http://inextepaper.jagran.com/852994/INext-Kanpur/26-06-16#page/10/1
ब्रिटिश काल का वह किस्सा भी जब टाटा समूह के संस्थापक जमशेदजी टाटा को मुंबई के वाटसन होटल में एंट्री देने से मना कर दिया गया था। इसलिए कि वह यूरोपीय नहीं हैं। जिसके बाद ताज होटल की स्थापना हुई। उसी ब्रिटेन की यूरोपीय यूनियन से एग्जिट पर यकीन जरा मुश्किल है।
बहरहाल ब्रेक्जिट अब हकीकत है। जनमत संग्रह का आइडिया देने वाले ब्रिटिश पीएम डेविड कैमरन पद छोड़ने की घोषणा कर चुके हैं। किसी को ग्लोबलाइजेशन का अंत नजदीक नजर रहा है। तो कोई इसे एकीकृत यूरोप के सपने का अंत और राष्ट्रवाद की वापसी बता रहा है। बहरहाल अगर हम सतह के नीचे जाकर देखेंगे तो नई कहानी सामने आती है। इस कहानी में भारत व दक्षिण एशिया के लिए भी निहितार्थ छिपे हैं।
'ब्रेक्सिट' व 'ब्रिमेन' (ब्रिटेन के यूरोपीय यूनियन में बने रहने के समर्थकों का गढ़ा शब्द) असल में पुरानी व नई पीढ़ी के बीच की खाई की ओर इशारा करता है। यह सुनी-सुनाई बात नहीं है। जनमत संग्रह के आंकड़े इसकी गवाही देते हैं।
ब्रिटेन के युवा यूरोपीय यूनियन का हिस्सा बने रहना चाहते हैं। वहीं परिवर्तन के साथ तालमेल न बिठा पाने वाली पुरानी पीढ़ी का बड़ा हिस्सा अलग होने के पक्ष में है। इसी तरह यूरोप भर से टैलेंट व निवेश को आकर्षित करने वाले बड़े शहर जहां 'ब्रिमेन' के पक्ष में खड़े नजर आए वहीं बाकी इलाके 'ब्रेक्सिट' के साथ हो लिए।
ब्रेक्सिट के बाद के शोरशराबे में कई आवाजें अनसुनी और तथ्य दबे रह गए हैं। जनमत संग्रह के परिणामों का आयु वर्ग के हिसाब से विश्लेषण करने पर एकदम नई तस्वीर निकलकर सामने आती है। यह जानकर हैरानी हो सकती है कि 18 से 24 साल के 75 प्रतिशत युवाओं ने यूरोपीय यूनियन के पक्ष में मतदान किया है। इतना ही नहीं 25-49 वर्ष की आयु वर्ग में से 56 प्रतिशत लोग यूनियन में बने रहने के पक्ष में हैं।
फिर सवाल होगा कि अगर इतने लोग यूरोपीय यूनियन के पक्ष में तो विरोध में कौन है। ब्रिटेन के ईयू से अलग होने के पक्ष में आयु वर्ग के हिसाब से सर्वाधिक 65 या उससे अधिक वसंत देख चुके लोग हैं। 50-64 साल के 56 प्रतिशत लोग भी नहीं चाहते कि ब्रिटेन संघ का हिस्सा बना रहे। यहां कुल आबादी में 18-24 वर्ष वालों का हिस्सा लगभग सात प्रतिशत है वहीं 50 वर्ष से अधिक उम्र वालों की संख्या लगभग 24 प्रतिशत है।
इसके मायने साफ हैं कि यूरोपीय यूनियन के अस्तित्व में आने के साथ पली बढ़ी पीढ़ी ने यथार्थ को स्वीकार कर लिया है। वह यूरोप के बाकी देशों के साथ मिलकर आगे बढ़ने को तैयार है। साथ ही इसके नफा नुकसान को भी समझती है। वहीं पहले की पीढ़ी बदलावों को सहजता से स्वीकार नहीं कर पाई है। उसे लगता है कि ब्रिटेन अलग रहकर ज्यादा सुखी संपन्न होगा। बाहर से आने वाले लोग उसके हितों को नुकसान पहुंचा व डेमोग्राफिक संतुलन को बिगाड़ रहे हैं।
ईयू पर इसके असर के बारे में यूरोपीय सेंटर फॉर इंटरनेशनल पॉलिटिकल इकॉनमी के निदेशक फ्रेडरिक एरिक्शन की टिप्पणी बेहद सटीक है। उनके शब्दों में यूके की विदाई से पूरा ईयू अपने अंदर झांकने को मजबूर, ग्लोबलाइजेशन को लेकर रक्षात्मक व दुनिया के सहारे आगे बढ़ने को लेकर आत्मविश्वास में कमी महसूस करेगा। ब्रिटेन की नई पीढ़ी शायद ही यह चाहती रही होगी।
सिर्फ आयु वर्ग ही नहीं परिणामों का अलग-अलग इलाकों के आधार पर विश्लेषण करने पर भी अलग ही तस्वीर उभरती है। इंग्लैंड में रहने वाले 53 प्रतिशत मतदाता यूरोपीय यूनियन से अलग होने के पक्ष में हैं। वहीं इंग्लैंड के सबसे बड़े शहर लंदन के 60 प्रतिशत मतदाता ईयू में बने रहना चाहते हैं।
वेल्स में रह रहे 53 प्रतिशत मतदाताओं ने भी अलग होने के पक्ष में मतदान किया है। बावजूद इसके वेल्स के सबसे बड़े शहर कार्डिफ के 60 प्रतिशत मतदाता यूनियन में रहना चाहते हैं। स्कॉटलैंड व नॉर्दर्न आयरलैंड की राय भी जनमत संग्रह के अंतिम परिणाम से अलग है। स्कॉटलैंड में 62 प्रतिशत लोग यूनियन में बने रहने के पक्षधर हैं।
वहीं नार्दर्न आयरलैंड में 56 प्रतिशत लोग ऐसा ही चाहते हैं। लंदन व कार्डिफ जैसे शहरों का परिणाम बताता है कि वह दुनिया भर से टैलेंट व निवेश आकर्षित करने की अपनी क्षमता को खोना नहीं चाहते हैं। ब्रिटेन की साइंटिफिक कम्यूनिटी भी इनोवेशन के नजरिये से यथास्थिति चाहती थी।
अगर ब्रिटेन में जनमत संग्रह के परिणामों को हम दक्षिण एशिया खासकर भारत, पाकिस्तान व बांग्लादेश के संदर्भ में देखेंगे तो कई सारे कयास लगाए जा सकते हैं। भारत की 65 प्रतिशत आबादी 35 या उससे कम उम्र की है। पाकिस्तान व बांग्लादेश में भी आबादी का बड़ा हिस्सा युवा है।
जो अलग नजरिए चीजें को देख व समझ रही है। जो नई संभावनाओं का दरवाजा भी खोल सकती है। वहीं दिशा न मिलने पर मुसीबत का सबब भी बन सकती है। नई पीढ़ी परंपरागत तरीके से चीजों को देखने की बजाय उन्हें देखने का अपना नजरिया विकसित कर रही है। यह परंपरावादियों के डर का भी कारण है। उन्हें पुरानी व्यवस्था के छिन्न भिन्न होने का खतरा नजर आता है।
ब्रिटेन भले ही यूरोपीय यूनियन से अलग हो रहा है लेकिन उसके युवा अलग संकेत दे रहे हैं। ऐसे ही संकेत दुनिया भर में देखे जा सकते हैं। फिलहाल तो ब्रिटेन यूरोपीय यूनियन से यह कहकर अलग हो सकता है कि ओके टाटा फिर मिलेंगे।
आई नेक्स्ट में दिनांक 26 जून, 2016 को प्रकाशित
http://inextepaper.jagran.com/852994/INext-Kanpur/26-06-16#page/10/1
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