राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर की यह लाइनें 'क्षमा शोभती उस भुजंग को, जिसके पास गरल हो, उसको क्या जो दंतहीन, विषरहित, विनीत, सरल हो।' आज की जियो पॉलिटिक्स पर फिट बैठती हैं। पुलवामा टेरर अटैक के बाद दुनिया भर के नेताओं ने संवेदना जताई है। आतंकवाद के खिलाफ भारत के साथ खड़े होने का भरोसा दिलाया है। बहरहाल जब सच के आइने में देखते हैं तो तस्वीर उलट नजर आती है। इधर अफगानिस्तान से बाहर निकलने को बेचैन अमरीका तालिबान से बात कर रहा है। जो पाकिस्तान अफगान समस्या की जड़ में है वही इसका ताना-बाना बुन रहा है। इस बातचीत में अफगानिस्तान की चुनी हुई सरकार की कोई भूमिका नहीं है। सौदेबाजी जिसे अंतरराष्ट्रीय मंचों पर नेगोशियेशन कहकर पुकारा जाता है कतर की राजधानी दोहा में हो रही है।
यहां सऊदी अरब की भूमिका पर भी गौर करना जरूरी है जिसकी कतर के साथ इस समय ठनी हुई है। कतर में अमरीकी सैनिक अड्डा है वहीं सऊदी अरब मिडिल ईस्ट में अमरीका का सबसे करीबी साझीदार है जिसके लिए डोनाल्ड ट्रंप ने ईरान से न्यूक्लियर डील तोड़ने में वक्त नहीं लगाया। सऊदी अरब और पाकिस्तान में हमेशा से करीब रहे हैं। इतना कि सऊदी अरब के 39 देशों के मिलिट्री अलायंस के कमांडर-इन-चीफ पूर्व पाक सेनाध्यक्ष जनरल राहिल शरीफ हैं। वह ढहती पाक इकोनॉमी को बचाने के लिए इमरान खान की झोली भी भर रहा है। उधर मॉस्को में रूस, चीन, पाकिस्तान, ईरान व तालिबान के प्रतिनिधियों के बीच भी बातचीत का सिलसिला जारी है।
रूस भारत का पुराना दोस्त जरूर है लेकिन इधर पाकिस्तान के साथ उसके रिश्तों में हल्की गर्माहट आई है। ईरान में तो भारत चाबहार बंदरगाह विकसित कर रहा है। एक दौर में तालिबान के खिलाफ नार्दर्न एलायंस की दोनों ने मिलकर मदद की थी। लंबे अरसे से खासकर कोल्ड वॉर के दौर में अफगानिस्तान को दुनिया भर की ताकतों ने शतरंज की बिसात की तरह देखा है। इस बिसात पर तालिबान पाक सेना व इंटेलीजेंस एजेंसियों का प्यादा है। दुनिया जिसे शांति प्रयासों का नाम दे रही है वह इस खेल से बाहर निकलने या उसमें बने रहने की कोशिश भर है।
अब बात भारत की जिसने अफगानिस्तान में कैपेसिटी बिल्डिंग व डेवलपमेंट पर तीन बिलियन डॉलर खर्च किए हैं। पाकिस्तान खुद को अफगानिस्तान और भारत के बीच फंसा पाता है। अगर फंसा रहता है तो उसे सांस लेने की भी जगह नहीं मिलती। नई दिल्ली और काबुल की नजदीकी उसके लिए किसी डरावने सपने से कम नहीं है। कंधार विमान अपहरण कांड की हमें रह-रहकर याद आती है। विमान जिसका अपहरण कर अफगानिस्तान ले जाया गया था। यात्रियों की जान के बदले में भारत को जिस जैश-ए-मोहम्मद ने पुलवामा टेरर अटैक की जिम्मेदारी ली है उसके सरगना मौलाना मसूद अजहर की रिहाई का सौदा करना पड़ा था। विमान जिस धरती पर खड़ा था तब उस पर तालिबान का नियंत्रण था। शासन जिसे तब दुनिया के तीन ही देशों ने मान्यता दे रखी थी पाकिस्तान, सऊदी अरब और संयुक्त अरब अमीरात। अब एक बार फिर शतंरज की बिसात पर मोहरें इधर से उधर हो रही हैं।
जियो पॉलिटिक्स में इस बात का अंदाज लगा पाना मुश्किल है कौन किसका दोस्त और किसका दुश्मन है। बहरहाल एक बात तय है कि अगर आप ताकतवर हैं तो दोस्ती कोई करे न करे लेकिन दुश्मनी मोल लेने की भी हिमाकत नहीं ही करेगा। अब बात आतंकी संगठनों जैश-ए-मोहम्मद और लश्कर-ए-तैयबा की, साथ ही उनके सरगनाओं मौलाना मसूद अजहर और हाफिज सईद की। पाक सेना व इंटेलीजेंस एजेंसियां ऐसे भस्मासुरों को खड़ा करने में महारत रखती हैं। तालिबान भी इसका उदाहरण है। ग्लोबल टेररिस्ट ओसामा बिन लादेन तो खैर उनका मेहमान ही था। ये सब भी उसके ही गेस्ट हैं।
यहां चीन की भी बात करना जरूरी है जो गाहे-बगाहे आतंकवाद की कड़ी निंदा करता रहता है। वह अमरीका के सामने भी ताल ठोंक रहा है। उसने पाकिस्तान में भारी भरकम निवेश कर रखा है। इंडो पैसिफिक रीजन में चीन को काबू में रखने के लिए अमरीका को भारत का साथ चाहिए। भारत को उलझाए रखने के लिए चीन को पाकिस्तान की जरूरत है। सिनकियांग में उइगर मुस्लिमों के साथ वह जो कर रहा है उस पर इस्लामिक देश शांत रहें इसमें भी पाक मददगार है। ऑर्गनाइजेशन ऑफ इस्लामिक कोऑपरेशन (ओआईसी) के 57 सदस्यों में से पाकिस्तान एक है। आतंक की जो फैक्टरी पाक ने खोल रखी है उसका असर भी वहां नहीं पड़ने देना चाहता। सिनकियांग की सीमाएं पाकिस्तान व अफगानिस्तान दोनों से लगती हैं। यहीं वह अक्साई चिन भी है जो है तो भारत का लेकिन फिलहाल चीन के कब्जे में है। पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर का वह हिस्सा भी जो उसने चीन को बतौर नजराना पेश कर दिया है। ऐतिहासिक सिल्क रूट यहीं से होकर गुजरता है।
कश्मीर पर आस्तीनें चढ़ा लेने व खुद को भारतीय मुसलमानों के लिए फ्रिकमंद बताने वाले मौलाना मसूद अजहर व हाफिज सईद को उइगर नजर ही नहीं आते हैं। इसके लिए उन्हें पाक सेना व इंटेलीजेंस के इशारे का इंतजार है। भारतीय मुसलमान भी इस हकीकत को बखूबी समझते हैं कि उनकी फिक्र किसके लिए है। अब आप एक सिरे को दूसरे से जोड़कर देख सकते हैं। जनाब, तो हल क्या है? विनय न मानत जलधि जड़ गए तीनि दिन बीति, बोले राम सकोप तब भय बिनु होइ न प्रीति।
भारत के लिए यह समय किसी चुनौती से कम नहीं है, उसके लिए कोई बड़ा एक्शन लेना बहुत ही चुनौतीपूर्ण और जटिल है। वर्ल्ड पॉलिटिक्स के एक सिरे पर भारत भी है, इस कारण दुविधाएं उसके सामने भी हैं/ कोई भी एकशन लेने से पहले उसे सब कुछ देखना होगा, सारे समीकरण की एनालिसिस करनी होगी और उसके बाद ही कोई निर्णय लेना होगा। इस सबके बीच एक बात तो तय है कि भारत को इस बार एक्शन में आना होगा। तुरंत न सही लेकिन बहुत देर भी न हो, यह भी जरूरी है। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पाकिस्तान के खिलाफ माहौल बनाना होगा। उन देशों को साथ लेना होगा जो मानते हैं कि पाकिस्तान आतंकी राष्ट्र है और आतंकवादियों का पनाहगाह है। यह समय भारत सरकार के लिए ही नहीं, बल्कि सेना के लिए भी अहम है, क्योंकि दुश्मन पहले से अलर्ट है और उसके सहयोगी भी उसे बैकडोर और अपने बयानों से सपोर्ट देने को तैयार हैं, ऐसे में हर कदम सोच समझकर रखना होगा।
दैनिक जागरण आई नेक्रूट में दिनांक 17 फरवरी, 2019 को प्रकाशित
http://inextepaper.jagran.com/2029760/Kanpur-Hindi-ePaper,-Kanpur-Hindi-Newspaper-InextLive/17-02-19#page/10/1
अब बात भारत की जिसने अफगानिस्तान में कैपेसिटी बिल्डिंग व डेवलपमेंट पर तीन बिलियन डॉलर खर्च किए हैं। पाकिस्तान खुद को अफगानिस्तान और भारत के बीच फंसा पाता है। अगर फंसा रहता है तो उसे सांस लेने की भी जगह नहीं मिलती। नई दिल्ली और काबुल की नजदीकी उसके लिए किसी डरावने सपने से कम नहीं है। कंधार विमान अपहरण कांड की हमें रह-रहकर याद आती है। विमान जिसका अपहरण कर अफगानिस्तान ले जाया गया था। यात्रियों की जान के बदले में भारत को जिस जैश-ए-मोहम्मद ने पुलवामा टेरर अटैक की जिम्मेदारी ली है उसके सरगना मौलाना मसूद अजहर की रिहाई का सौदा करना पड़ा था। विमान जिस धरती पर खड़ा था तब उस पर तालिबान का नियंत्रण था। शासन जिसे तब दुनिया के तीन ही देशों ने मान्यता दे रखी थी पाकिस्तान, सऊदी अरब और संयुक्त अरब अमीरात। अब एक बार फिर शतंरज की बिसात पर मोहरें इधर से उधर हो रही हैं।
जियो पॉलिटिक्स में इस बात का अंदाज लगा पाना मुश्किल है कौन किसका दोस्त और किसका दुश्मन है। बहरहाल एक बात तय है कि अगर आप ताकतवर हैं तो दोस्ती कोई करे न करे लेकिन दुश्मनी मोल लेने की भी हिमाकत नहीं ही करेगा। अब बात आतंकी संगठनों जैश-ए-मोहम्मद और लश्कर-ए-तैयबा की, साथ ही उनके सरगनाओं मौलाना मसूद अजहर और हाफिज सईद की। पाक सेना व इंटेलीजेंस एजेंसियां ऐसे भस्मासुरों को खड़ा करने में महारत रखती हैं। तालिबान भी इसका उदाहरण है। ग्लोबल टेररिस्ट ओसामा बिन लादेन तो खैर उनका मेहमान ही था। ये सब भी उसके ही गेस्ट हैं।
यहां चीन की भी बात करना जरूरी है जो गाहे-बगाहे आतंकवाद की कड़ी निंदा करता रहता है। वह अमरीका के सामने भी ताल ठोंक रहा है। उसने पाकिस्तान में भारी भरकम निवेश कर रखा है। इंडो पैसिफिक रीजन में चीन को काबू में रखने के लिए अमरीका को भारत का साथ चाहिए। भारत को उलझाए रखने के लिए चीन को पाकिस्तान की जरूरत है। सिनकियांग में उइगर मुस्लिमों के साथ वह जो कर रहा है उस पर इस्लामिक देश शांत रहें इसमें भी पाक मददगार है। ऑर्गनाइजेशन ऑफ इस्लामिक कोऑपरेशन (ओआईसी) के 57 सदस्यों में से पाकिस्तान एक है। आतंक की जो फैक्टरी पाक ने खोल रखी है उसका असर भी वहां नहीं पड़ने देना चाहता। सिनकियांग की सीमाएं पाकिस्तान व अफगानिस्तान दोनों से लगती हैं। यहीं वह अक्साई चिन भी है जो है तो भारत का लेकिन फिलहाल चीन के कब्जे में है। पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर का वह हिस्सा भी जो उसने चीन को बतौर नजराना पेश कर दिया है। ऐतिहासिक सिल्क रूट यहीं से होकर गुजरता है।
कश्मीर पर आस्तीनें चढ़ा लेने व खुद को भारतीय मुसलमानों के लिए फ्रिकमंद बताने वाले मौलाना मसूद अजहर व हाफिज सईद को उइगर नजर ही नहीं आते हैं। इसके लिए उन्हें पाक सेना व इंटेलीजेंस के इशारे का इंतजार है। भारतीय मुसलमान भी इस हकीकत को बखूबी समझते हैं कि उनकी फिक्र किसके लिए है। अब आप एक सिरे को दूसरे से जोड़कर देख सकते हैं। जनाब, तो हल क्या है? विनय न मानत जलधि जड़ गए तीनि दिन बीति, बोले राम सकोप तब भय बिनु होइ न प्रीति।
भारत के लिए यह समय किसी चुनौती से कम नहीं है, उसके लिए कोई बड़ा एक्शन लेना बहुत ही चुनौतीपूर्ण और जटिल है। वर्ल्ड पॉलिटिक्स के एक सिरे पर भारत भी है, इस कारण दुविधाएं उसके सामने भी हैं/ कोई भी एकशन लेने से पहले उसे सब कुछ देखना होगा, सारे समीकरण की एनालिसिस करनी होगी और उसके बाद ही कोई निर्णय लेना होगा। इस सबके बीच एक बात तो तय है कि भारत को इस बार एक्शन में आना होगा। तुरंत न सही लेकिन बहुत देर भी न हो, यह भी जरूरी है। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पाकिस्तान के खिलाफ माहौल बनाना होगा। उन देशों को साथ लेना होगा जो मानते हैं कि पाकिस्तान आतंकी राष्ट्र है और आतंकवादियों का पनाहगाह है। यह समय भारत सरकार के लिए ही नहीं, बल्कि सेना के लिए भी अहम है, क्योंकि दुश्मन पहले से अलर्ट है और उसके सहयोगी भी उसे बैकडोर और अपने बयानों से सपोर्ट देने को तैयार हैं, ऐसे में हर कदम सोच समझकर रखना होगा।
दैनिक जागरण आई नेक्रूट में दिनांक 17 फरवरी, 2019 को प्रकाशित
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