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जिंदगी में बदलाव की ‘कोडैक मोमेंट’

किस्‍सा पुराना है लेकिन मजेदार है. आपने कोडैक का नाम तो सुना ही होगा. वाकया 1975 का है. कंपनी के इंजीनियर स्‍टीव साशन ने दुनिया का पहला डिजिटल कैमरा बनाया था. जब वह उसे लेकर मैनेजमेंट के पास गए तो उन्‍हें सुनने को मिला, बढ़िया है, लेकिन किसी को बताना मत’. अमरीका के फोटोग्राफी फिल्‍म के 89 परसेंट मार्केट पर काबिज कंपनी को फिल्‍मलेस फोटोग्राफी का यह आइडिया कुछ जंचा नहीं.
  
यह वह दौर था जब कोडैक मोमेंट डिक्‍शनरी ही नहीं लोगों की जिंदगी का हिस्‍सा हुआ करती थी
. 1981 में कंपनी की ओर से कराई गई स्‍टडी में कहा गया था कि उसके पास खुद को बदलने के लिए 10 साल का वक्‍त है. समय का पहिया घूमा जनवरी 2012 में कंपनी को दीवालिया होने की घोषणा करनी पड़ी.


अंग्रेजी में कहावत है, टाइम एंड टाइड वेट फॉर नन, समय और लहरें किसी का इंतजार नहीं करती. उस समय कंपनी के सीईओ एंटोनियो एम पेरेज ने कहा, हमें अब खुद को बदलना ही होगा’. इस सबकी वजह बने डिजिटल कैमरे. कहानी जहां से शुरू हुई थी वहीं पहुंच गई थी. कंपनी को इस मोमेंट का इंतजार तो कभी नहीं रहा होगा.

हमारी जिंदगी में भी बदलाव की
कोडैक मोमेंट आती है. कोई स्‍टीव साशन आकर उसके बारे में बताता है. ज्‍यादातर मौकों पर हमारा जवाब होता है, बढ़िया है, लेकिन किसी को बताना मत. मोमेंट्स जो सिर्फ संभालकर, तहाकर बक्‍से में रखने और फिर सर्दियों में निकाले जाने के लिए नहीं हुआ करतीं. कोडैक ने भी अपनी ही कराई हुई स्‍टडी को दस साल तक बेहद करीने से  संभालकर रखा था.

यह कहानी मोटोरोला
, नोकिया और ब्‍लैकबेरी के साथ दोहराई जा चुकी है. दुनिया का पहला मोबाइल हैंडसेट बनाने वाली कंपनी मोटोरोला को गूगल खरीद चुका है. नोकिया अब माइक्रोसॉफ्ट की है. ब्‍लैकबेरी को भी किसी का इंतजार है. दुनिया के तीन अलग देशों अमरीका, फिनलैंड और कनाडा की इन कंपनियों की किस्‍मत एक कैसे हो सकती है. यह बात कोडैक को देखकर बखूबी समझी जा सकती है.

कई बार हमारी जिंदगी भी इंतजार में गुजरती है
. रोज की उलझनें सुलझाने में बहुत कुछ अनसुलझा रह जाने देने की आदत पड़ जाती है. अलमारी में लगा मकड़ी का जाला साफ होता जाता है लेकिन छत पर लगा जाला देखकर भी अनदेखा होता है. दिल, दिमाग या कोई करीबी तीनों ही स्‍टीव साशन की तरह कुछ कह रहे होते हैं लेकिन हम सुनना नहीं चाहते या फिर सुनकर भी अनसुना कर देते हैं.
  
बदलते मौसम में आप कुछ सुन पा रहे हैं
. जरा, कोशिश तो कीजिए. इस दीवाली खुशियों के दीप जलाएं की टैगलाइन के साथ किसी नियॉन साइन से झांकते दिए या घर की चौखट पर हवा से मुकाबिल दिया सब कुछ कहने की कोशिश कर रहे हैं. पूछ रहे हैं, हमारे अंदर कुछ ऐसा तो नहीं जिसका बदलना जरूरी है. इससे कोई शिकायत भी नहीं होनी चाहिए. जिस तरह घर की दीवारों पर नए पेंट की परत के नीचे छिप गई पुरानी परत को नहीं होती है.

कोडैक की कहानी अभी खत्‍म नहीं हुई है
. उसके पेटेंट अब एपल, गूगल, फेसबुक, अमेजन, माइक्रोसॉफ्ट, सैमसंग, एडोब और एचटीसी जैसी कंपनियों के काम आ रहे हैं. हमारी आपकी कहानी भी चलती रहेगी, उसमें न जाने कितने कोडैक मोमेंट आएंगे लेकिन निगाह उस मोमेंट पर होगी जो जिंदगी को बदल सकती थी या है. टिल दैन, हैप्‍पी क्रैकर फ्री दीवाली.

आईनेक्‍स्‍ट में दिनांक 2 नवंबर 2013 को प्रकाशित
http://inextepaper.jagran.com/180043/INext-Kanpur/02.11.13#page/13/2

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