'आधार' को कानूनी आधार मिलने के साथ ही फिल्म डॉन में गाया किशोर कुमार का गाना याद आ रहा है। अरे दीवानों मुझे पहचानो, कहां से आया मैं हूं कौन। सरकारी एजेंसियों के पास किसी काम से जाने वाले भारतीय नागरिक इस सवाल से दो चार होते रहे हैं। बैंक में खाता खुलवाने से लेकर मोबाइल फोन का सिम कार्ड लेने तक। पैन कार्ड, ड्राइविंग लाइसेंस से लेकर पासपोर्ट बनवाने तक। हर जगह पहचान की जरूरत होती है।
जिस 'मैं हूं कौन' का जवाब हम ताउम्र नहीं खोज पाते उसका जवाब जानने में सरकारी दफ्तर हमारी मदद करते आए हैं। वोटर कार्ड नहीं तो बिजली का बिल, अरे टेलीफोन का बिल दे दीजिएगा। ऐसे न जाने कितने संवादों से आप और हम रूबरू हुए होंगे।
लंबे समय तक भारतीयों के लिए राशन कार्ड उनकी पहचान का एकमात्र आधार रहा है। फिर वोटर कार्ड आया। अब श्वेत-श्याम नहीं रंगीन। यह कार्ड राजनीति का आधार भी मजबूत करते रहे हैं। यकीन न हो तो कभी अपने मोहल्ले के पार्षद या सभासद से पूछकर देखिएगा। देश की राजनीति भी पहचान के मुद्दे पर ठंडी-गरम होती रही है।
आपको भले ही मजाक लगे पहचान बड़ी चीज है। कभी बेहतर मौकों या पढ़ाई के लिए एक शहर से दूसरे शहर में भटकते युवाओं या स्टूडेंट्स से पूछिएगा। अनजान शहर में कोई जान-पहचान वाला मिल जाए यही बड़ी बात होती थी। आज भी है। ऐसे में बैंक का खाता खुलवाने के लिए कोई आपसे पहचान मांग ले तो कैसी चिढ़ मचती होगी। यही हाल मोबाइल फोन के सिम के लिए रहा है। मजे की बात यह कि हर नया दस्तावेज पहचान साबित करने की कड़ी में जुड़ता चला गया।
इस परंपरा को तोड़ने का दारोमदार बारह अंकों वाली विशिष्ट पहचान संख्या आधार पर आ गया लगता है। आम लोगों का देखने नजरिया यही है। सरकार का अलग हो सकता है। वैसे भी हमारे हां योजनाएं इसलिए बनती हैं क्योंकि सरकार को लगता है कि वह हमारे लिए जरूरी हैं। नागरिक कभी समझ नहीं पाते कि सरकार इस नतीजे पर कैसे पहुंचती है। नागरिकों के नजरिए से योजनाओं को देखने की दृष्टि सरकारें विकसित नहीं कर पाईं या करना नहीं चाहती हैं। यह अलग सवाल है। मसलन आपके इलाके की सड़क तब बनेगी जब सरकार को जरूरी लगेगी।
अगर 12 अंकों वाली विशिष्ट पहचान संख्या आधार की बात की जाए। तो सरकार को अपना सब्सिडी बिल घटाने का 'आधार' चाहिए। शहरी मध्यम वर्ग को पहचान के ढेरों दस्तावेजों से मुक्ति का 'आधार' चाहिए। जिन्हें जरूरत होने के बावजूद नहीं मिल रही उन्हें सब्सिडी का 'आधार' चाहिए। हर किसी की जरूरत अलग है। इस सबके बीच बड़ी चिंता प्राइवेसी की है।
अब जबकि आधार को कानूनी आधार मिल गया है। और वह कहने के लिए ही वालंटरी है। यह समझना जरूरी है कि आखिर इसका इस्तेमाल किसलिए होने जा रहा है। पहला किसी भी सरकारी सेवा या सब्सिडी के लिए इसे पहचान के तौर पर इस्तेमाल किया जा सकेगा। दूसरा कोई सार्वजनिक या निजी एंटिटी इसे प्रूफ ऑफ आइडेंटिटी की तरह स्वीकार कर सकती है। इतना ही नहीं वह यूआईडी अथॉरिटी से दी गई जानकारी की पुष्टि के लिए अनुरोध भी कर सकती है। हालांकि इसके लिए व्यक्ति की सहमति जरूरी है। सहमति कैसे ली और दी जाती है। यह आप और हम बखूबी जानते हैं।
यह भी जान लीजिए यूआईडी बायोमेट्रिक जानकारी नहीं दे सकती है। साथ ही जुटाई जा रही जानकारी में जाति, धर्म, नस्ल, भाषा, आय व मेडिकल हिस्ट्री वगैरह शामिल नहीं है। आधार नंबर यूनिक व रैंडम है। हालांकि कार्ड होल्डर्स को भविष्य में अतिरिक्त बायोमेट्रिक व डेमोग्राफिक जानकारी शेयर करने व दी गई जानकारी अपडेट करने के लिए तैयार रहना होगा।
प्राइवेसी का मसला किस वजह से है। यह भी समझ लीजिए। राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए जरूरी समझे जाने पर केन्द्र सरकार का संयुक्त सचिव स्तर का अधिकारी बायोमेट्रिक व डेमोग्राफिक जानकारी मांग सकता है। जिसकी समीक्षा कैबिनेट सचिव, कानूनी मामलों व इलेक्ट्रानिक व आईटी सचिवों की समिति करेगी। वहीं कोर्ट के मांगने पर व्यक्ति का आधार नंबर, फोटो व डेमोग्राफिक जानकारी उपलब्ध कराई जा सकती है। ऐसे में जानकारी का दुरुपयोग रोकने के लिए राष्ट्रीय सुरक्षा को ठीक से परिभाषित किए जाने की जरूरत महसूस की जा रही है। सेंट्रलाइज डाटा बेस में सेंध लगाने पर सजा का भी प्रावधान है। जानकारी मांगने वाली एंटिटी भी अगर नियमों का उल्लंघन करती है तो भी सजा हो सकती है।
डाटा बेस सुरक्षित रहे और जानकारी गलत हाथों में न पड़े तो लोगों को आधार से कोई परेशानी नहीं है। यही वजह है कि 90 प्रतिशत से ज्यादा लोग विशिष्ट पहचान संख्या ले चुके हैं। नहीं तो लोग मैं हूं कौन गाते रहते और सरकार ढ़ूढ़ती रहती। वैसे जब किशोर दा ने यह गाया था। तब आधार नहीं था। अगर होता तो गाने की लाइनें कैसी होती हैं। सोचते रहिए। जिस तरह सरकारी एजेंसियों से लेकर प्राइवेट सेक्टर तक भविष्य में आधार के नए-नए उपयोग सोच रहा है। वैसे आजादी के बाद से अब तक भारतीय नागरिक अपनी पहचान तलाश रहा है।
आईनेक्स्ट में दिनांक 20 मार्च, 2016 को प्रकाशित
http://inextepaper.jagran.com/754251/INext-Kanpur/20-03-16#page/10/2
जिस 'मैं हूं कौन' का जवाब हम ताउम्र नहीं खोज पाते उसका जवाब जानने में सरकारी दफ्तर हमारी मदद करते आए हैं। वोटर कार्ड नहीं तो बिजली का बिल, अरे टेलीफोन का बिल दे दीजिएगा। ऐसे न जाने कितने संवादों से आप और हम रूबरू हुए होंगे।
लंबे समय तक भारतीयों के लिए राशन कार्ड उनकी पहचान का एकमात्र आधार रहा है। फिर वोटर कार्ड आया। अब श्वेत-श्याम नहीं रंगीन। यह कार्ड राजनीति का आधार भी मजबूत करते रहे हैं। यकीन न हो तो कभी अपने मोहल्ले के पार्षद या सभासद से पूछकर देखिएगा। देश की राजनीति भी पहचान के मुद्दे पर ठंडी-गरम होती रही है।
आपको भले ही मजाक लगे पहचान बड़ी चीज है। कभी बेहतर मौकों या पढ़ाई के लिए एक शहर से दूसरे शहर में भटकते युवाओं या स्टूडेंट्स से पूछिएगा। अनजान शहर में कोई जान-पहचान वाला मिल जाए यही बड़ी बात होती थी। आज भी है। ऐसे में बैंक का खाता खुलवाने के लिए कोई आपसे पहचान मांग ले तो कैसी चिढ़ मचती होगी। यही हाल मोबाइल फोन के सिम के लिए रहा है। मजे की बात यह कि हर नया दस्तावेज पहचान साबित करने की कड़ी में जुड़ता चला गया।
इस परंपरा को तोड़ने का दारोमदार बारह अंकों वाली विशिष्ट पहचान संख्या आधार पर आ गया लगता है। आम लोगों का देखने नजरिया यही है। सरकार का अलग हो सकता है। वैसे भी हमारे हां योजनाएं इसलिए बनती हैं क्योंकि सरकार को लगता है कि वह हमारे लिए जरूरी हैं। नागरिक कभी समझ नहीं पाते कि सरकार इस नतीजे पर कैसे पहुंचती है। नागरिकों के नजरिए से योजनाओं को देखने की दृष्टि सरकारें विकसित नहीं कर पाईं या करना नहीं चाहती हैं। यह अलग सवाल है। मसलन आपके इलाके की सड़क तब बनेगी जब सरकार को जरूरी लगेगी।
अगर 12 अंकों वाली विशिष्ट पहचान संख्या आधार की बात की जाए। तो सरकार को अपना सब्सिडी बिल घटाने का 'आधार' चाहिए। शहरी मध्यम वर्ग को पहचान के ढेरों दस्तावेजों से मुक्ति का 'आधार' चाहिए। जिन्हें जरूरत होने के बावजूद नहीं मिल रही उन्हें सब्सिडी का 'आधार' चाहिए। हर किसी की जरूरत अलग है। इस सबके बीच बड़ी चिंता प्राइवेसी की है।
अब जबकि आधार को कानूनी आधार मिल गया है। और वह कहने के लिए ही वालंटरी है। यह समझना जरूरी है कि आखिर इसका इस्तेमाल किसलिए होने जा रहा है। पहला किसी भी सरकारी सेवा या सब्सिडी के लिए इसे पहचान के तौर पर इस्तेमाल किया जा सकेगा। दूसरा कोई सार्वजनिक या निजी एंटिटी इसे प्रूफ ऑफ आइडेंटिटी की तरह स्वीकार कर सकती है। इतना ही नहीं वह यूआईडी अथॉरिटी से दी गई जानकारी की पुष्टि के लिए अनुरोध भी कर सकती है। हालांकि इसके लिए व्यक्ति की सहमति जरूरी है। सहमति कैसे ली और दी जाती है। यह आप और हम बखूबी जानते हैं।
यह भी जान लीजिए यूआईडी बायोमेट्रिक जानकारी नहीं दे सकती है। साथ ही जुटाई जा रही जानकारी में जाति, धर्म, नस्ल, भाषा, आय व मेडिकल हिस्ट्री वगैरह शामिल नहीं है। आधार नंबर यूनिक व रैंडम है। हालांकि कार्ड होल्डर्स को भविष्य में अतिरिक्त बायोमेट्रिक व डेमोग्राफिक जानकारी शेयर करने व दी गई जानकारी अपडेट करने के लिए तैयार रहना होगा।
प्राइवेसी का मसला किस वजह से है। यह भी समझ लीजिए। राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए जरूरी समझे जाने पर केन्द्र सरकार का संयुक्त सचिव स्तर का अधिकारी बायोमेट्रिक व डेमोग्राफिक जानकारी मांग सकता है। जिसकी समीक्षा कैबिनेट सचिव, कानूनी मामलों व इलेक्ट्रानिक व आईटी सचिवों की समिति करेगी। वहीं कोर्ट के मांगने पर व्यक्ति का आधार नंबर, फोटो व डेमोग्राफिक जानकारी उपलब्ध कराई जा सकती है। ऐसे में जानकारी का दुरुपयोग रोकने के लिए राष्ट्रीय सुरक्षा को ठीक से परिभाषित किए जाने की जरूरत महसूस की जा रही है। सेंट्रलाइज डाटा बेस में सेंध लगाने पर सजा का भी प्रावधान है। जानकारी मांगने वाली एंटिटी भी अगर नियमों का उल्लंघन करती है तो भी सजा हो सकती है।
डाटा बेस सुरक्षित रहे और जानकारी गलत हाथों में न पड़े तो लोगों को आधार से कोई परेशानी नहीं है। यही वजह है कि 90 प्रतिशत से ज्यादा लोग विशिष्ट पहचान संख्या ले चुके हैं। नहीं तो लोग मैं हूं कौन गाते रहते और सरकार ढ़ूढ़ती रहती। वैसे जब किशोर दा ने यह गाया था। तब आधार नहीं था। अगर होता तो गाने की लाइनें कैसी होती हैं। सोचते रहिए। जिस तरह सरकारी एजेंसियों से लेकर प्राइवेट सेक्टर तक भविष्य में आधार के नए-नए उपयोग सोच रहा है। वैसे आजादी के बाद से अब तक भारतीय नागरिक अपनी पहचान तलाश रहा है।
आईनेक्स्ट में दिनांक 20 मार्च, 2016 को प्रकाशित
http://inextepaper.jagran.com/754251/INext-Kanpur/20-03-16#page/10/2
बढ़िया लिखा है।
जवाब देंहटाएंधन्यवाद
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