पहली नजर में देखें तो शीना बोरा हत्याकांड हमारे समाज में रिश्तों के बिखरते ताने-बाने की कहानी सरीखा नजर आता है. हर रोज मामले की परतें खुलने के साथ गुत्थी जो सुलझने की बजाय उलझती जाती है. यह रिश्तों की नई केमिस्ट्री है, जिसमें से भरोसा नामक तत्व गायब हो चुका है. अपनी बेटी को बहन बताती आई परी बोरा उर्फ इंद्राणी मुखर्जी पर उसी की जान लेने का आरोप है. शीना की मौत के लिए कौन-कौन जिम्मेरदार है यह तो मुंबई पुलिस पता लगा ही लेगी. बहरहाल रिश्तों के कत्ल के पीछे के असल कारणों का पता लग पाएगा यह कहना जरा मुश्किल है.
कभी मुश्किल हालात में संबल बनने वाले रिश्ते परेशानी का सबब बनेंगे यह किसी ने सोचा भी नहीं होगा. उनकी नींव इतनी कमजोर कैसे हो गई. वह तो कठिन समय में इमोशनल बैलेंस बनाए रखने में मददगार हुआ करते थे. संतुलन की जगह इमोशनल डिसकनेक्टं ने कैसे ले ली, खाली जगह जिसे भरने के लिए उपाय सोचते जिंदगी बीत जाती है. उलझे हुए रिश्तों की यह न तो पहली कहानी है और न आखिरी. नैना साहनी, आरुषि से लेकर नीरज ग्रोवर हत्यानकांड तक हम कई बार इस उलझन के अलग-अलग रूप देख चुके हैं.
परी बोरा की कहानी में पैसे, ग्लैमर और कामयाबी से इतर भी बहुत कुछ है. गुवाहाटी से मुंबई के बीच की अपनी उड़ान में उसने एक के बाद एक नए रिश्ते बनाए लेकिन हर रिश्ते की नींव पहले से कमजोर थी. यहां रिश्तों में सच की जगह झूठ ने ले रखी थी. कहते हैं एक झूठ को छिपाने के लिए कई झूठ बोलने पड़ते हैं. उसके साथ भी यही हुआ. उसने उड़ान तो भरी लेकिन उसके नियमों का पालन नहीं किया.
यह भी साफ है कि पहले हम अपने रिश्तों को खुद ही जटिल बनाते चले जाते और फिर उन्हीं में फंसकर रह जाते हैं. इंसानी जिंदगी से गायब होती सहजता उन्हें औ जटिल बना रही है. अब शायद हमें परमानेंट नहीं टेंप्रेरेरी रिश्तों की तलाश है. जिनमें एक दूसरे के प्रति पारदर्शी होने की जरा भी जरूरत नहीं है. एक्ट्रा मैरिटल रिलेशनशिप को बढ़ावा देने वाली वेबसाइट एश्ले मैडिसन पर छपरा से लेकर दिल्ली तक के लगभग 1.50 लाख भारतीयों के एकाउंट इसी बात की तस्दीक करते हैं. जिन शहरों के लोगों ने वेबसाइट पर एकाउंट बना रखे हैं उनमें बनारस, इलाहाबाद, पटना, लखनऊ और मुजफ्फरनगर भी हैं.
लोग अनुराग कश्यप की फिल्म ‘अगली’ के किरदारों की तरह होते जा रहे हैं. जो किडनैप हुई बच्ची के रिश्तेदार तो हैं लेकिन रिश्तेा को लेकर ईमादार नहीं हैं. जिसकी परिणिति बच्ची की मौत में होती है. रिश्तों में खाली जगह छोड़ते जाना और फिर उसे फेसबुक और व्हाट्सएप से भरने की नाकाम कोशिश आम हो चुकी है. साहित्य के लिए नोबेल पुरस्कार विजेता गुंटर ग्रास की कही पंक्ति याद आती है, ‘फेसबुक वही जगह है ना, जहां लोगों के 500 दोस्त होने के बावजूद कोई दोस्त नहीं होता’.
अगर प्रेम की सीमित हो चुकी परिभाषा के दायरे से बाहर निकलकर सोचेंगे तो ‘रहिमन धागा प्रेम का मत तोड़ो चटकाय टूटे से फिर ना जुड़े, जुड़े गांठ परि जाय’ का मतलब रिश्तों के संदर्भ में अपने आप समझ आ जाएगा.
रिश्तों की इस उहापोह के बीच कई बार यह समझ पाना मुश्किचल होता है कि बिना किसी रिश्ते के जब कोई किसी की मदद को आगे आता है तो उसे क्या नाम देंगे. स्वंतंत्रता दिवस से ठीक दो दिन पहले मेरठ में लांस नायक वेदमित्र चौधरी की हत्या एक लड़की से छेड़छाड़ का विरोध करने पर कर दी गई थी. वह लड़की उनकी रिश्तेदार नहीं थी.
बहरहाल रिश्तों की अहमियत को हम कभी दरकिनार नहीं कर पाएंगे लेकिन शीना हत्याकांड समाज में रिश्तों की तस्वीर का आइना जरूर दिखाता है. तस्वीर आधी अधूरी है या पूरी यह इत्मिनान के साथ नहीं कहा जा सकता.
आईनेक्स्ट में दिनांक 29 अगस्त को प्रकाशित
http://inextepaper.jagran.com/575255/INext-Kanpur/29-08-15#page/17/1
कभी मुश्किल हालात में संबल बनने वाले रिश्ते परेशानी का सबब बनेंगे यह किसी ने सोचा भी नहीं होगा. उनकी नींव इतनी कमजोर कैसे हो गई. वह तो कठिन समय में इमोशनल बैलेंस बनाए रखने में मददगार हुआ करते थे. संतुलन की जगह इमोशनल डिसकनेक्टं ने कैसे ले ली, खाली जगह जिसे भरने के लिए उपाय सोचते जिंदगी बीत जाती है. उलझे हुए रिश्तों की यह न तो पहली कहानी है और न आखिरी. नैना साहनी, आरुषि से लेकर नीरज ग्रोवर हत्यानकांड तक हम कई बार इस उलझन के अलग-अलग रूप देख चुके हैं.
परी बोरा की कहानी में पैसे, ग्लैमर और कामयाबी से इतर भी बहुत कुछ है. गुवाहाटी से मुंबई के बीच की अपनी उड़ान में उसने एक के बाद एक नए रिश्ते बनाए लेकिन हर रिश्ते की नींव पहले से कमजोर थी. यहां रिश्तों में सच की जगह झूठ ने ले रखी थी. कहते हैं एक झूठ को छिपाने के लिए कई झूठ बोलने पड़ते हैं. उसके साथ भी यही हुआ. उसने उड़ान तो भरी लेकिन उसके नियमों का पालन नहीं किया.
यह भी साफ है कि पहले हम अपने रिश्तों को खुद ही जटिल बनाते चले जाते और फिर उन्हीं में फंसकर रह जाते हैं. इंसानी जिंदगी से गायब होती सहजता उन्हें औ जटिल बना रही है. अब शायद हमें परमानेंट नहीं टेंप्रेरेरी रिश्तों की तलाश है. जिनमें एक दूसरे के प्रति पारदर्शी होने की जरा भी जरूरत नहीं है. एक्ट्रा मैरिटल रिलेशनशिप को बढ़ावा देने वाली वेबसाइट एश्ले मैडिसन पर छपरा से लेकर दिल्ली तक के लगभग 1.50 लाख भारतीयों के एकाउंट इसी बात की तस्दीक करते हैं. जिन शहरों के लोगों ने वेबसाइट पर एकाउंट बना रखे हैं उनमें बनारस, इलाहाबाद, पटना, लखनऊ और मुजफ्फरनगर भी हैं.
लोग अनुराग कश्यप की फिल्म ‘अगली’ के किरदारों की तरह होते जा रहे हैं. जो किडनैप हुई बच्ची के रिश्तेदार तो हैं लेकिन रिश्तेा को लेकर ईमादार नहीं हैं. जिसकी परिणिति बच्ची की मौत में होती है. रिश्तों में खाली जगह छोड़ते जाना और फिर उसे फेसबुक और व्हाट्सएप से भरने की नाकाम कोशिश आम हो चुकी है. साहित्य के लिए नोबेल पुरस्कार विजेता गुंटर ग्रास की कही पंक्ति याद आती है, ‘फेसबुक वही जगह है ना, जहां लोगों के 500 दोस्त होने के बावजूद कोई दोस्त नहीं होता’.
अगर प्रेम की सीमित हो चुकी परिभाषा के दायरे से बाहर निकलकर सोचेंगे तो ‘रहिमन धागा प्रेम का मत तोड़ो चटकाय टूटे से फिर ना जुड़े, जुड़े गांठ परि जाय’ का मतलब रिश्तों के संदर्भ में अपने आप समझ आ जाएगा.
रिश्तों की इस उहापोह के बीच कई बार यह समझ पाना मुश्किचल होता है कि बिना किसी रिश्ते के जब कोई किसी की मदद को आगे आता है तो उसे क्या नाम देंगे. स्वंतंत्रता दिवस से ठीक दो दिन पहले मेरठ में लांस नायक वेदमित्र चौधरी की हत्या एक लड़की से छेड़छाड़ का विरोध करने पर कर दी गई थी. वह लड़की उनकी रिश्तेदार नहीं थी.
बहरहाल रिश्तों की अहमियत को हम कभी दरकिनार नहीं कर पाएंगे लेकिन शीना हत्याकांड समाज में रिश्तों की तस्वीर का आइना जरूर दिखाता है. तस्वीर आधी अधूरी है या पूरी यह इत्मिनान के साथ नहीं कहा जा सकता.
आईनेक्स्ट में दिनांक 29 अगस्त को प्रकाशित
http://inextepaper.jagran.com/575255/INext-Kanpur/29-08-15#page/17/1
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