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डिजिटल होना ही नहीं रिस्‍पॉसिंबल बनना भी जरूरी

पिछले दिनों जब लगभग सारा सोशल मीडिया दिल्‍ली चुनावों और उसके नतीजों पर बहस में उलझा था बीकानेर, राजस्‍थान के छोटे से कस्‍बे नोखा में अनोखा काम हुआ. एक महिला की जान बचाने में खुद को नाकाम पा रहे डा. देशराज ने यह अपडेट मेडिकल डिपार्टमेंट बीकानेर के नाम से बने व्‍हाट्सएप ग्रुप में डाल दी. जिस पर मिली बाकी डॉक्‍टरों की सलाह की मदद से वह उसकी जान बचाने में कामयाब रहे. देखने में यह घटना छोटी लग सकती है लेकिन मेडिकल सर्विसेज तक जिनकी पहुंच न के बराबर है उनके लिए यह अनोखी ही नहीं बल्‍कि बड़ी भी है.
 
यह कमाल व्‍हाट्सएप का कम बल्‍कि डॉक्‍टरों के एक समूह का तकनीक को अपनाने और उसके सही इस्‍तेमाल का ज्‍यादा है. यह इस ओर भी इशारा करता है कि आमतौर पर रूरल इंडिया जिसे हम डिजिटल डिवाइड के दूसरे सिरे पर रखते आए हैं अरबन इंडिया के साथ कदमताल करने के लिए तैयार है.

एक और उदाहरण है लेकिन संदर्भ अलग है. मामला देश के सबसे बड़े महानगरों में से एक हैदराबाद का है. व्‍हाट्सएप पर शेयर किया जा रहा एक रेप वीडियो सोशल एक्‍टीविस्‍ट सुनीता कृष्‍णन के पास पहुंचता है. अमूमन ऐसे वीडियो बनाने वालों की मंशा पीड़िता का उत्‍पीड़न जारी रखने या उसे मानसिक रूप से प्रताड़ित करने की होती है. रेपिस्‍टों को कृष्‍णन ने उन्‍हीं की भाषा में जवाब देने के लिए शेम द रेपिस्‍ट कैंपेन शुरू किया है. वह सोशल मीडिया के जरिए उनकी पहचान उजागर करने के काम में लगी हैं.

इस और पहले वाली घटना
 में कम्‍यूनिकेशन और इंफार्मेशन शेयर करने का प्‍लेटफॉर्म एक ही है लेकिन उनका इस्‍तेमाल बेहद अलग कामों के लिए हुआ है. मतलब साफ है कि डिजिटल रिवॉल्‍यूशन के साथ ही डिजिटल रिस्‍पांसिबिलिटी भी आने वाले वक्‍त की जरूरत है. रिस्‍पांसिबल सिटीजन होने का मतलब डिजिटली रिस्‍पांसिबल  होने से भी लिया जाना चाहिए या नहीं इस पर बहस की पूरी गुंजाइश है. यह भी विवाद का विषय हो सकता है कि रिस्‍पांसिबल और इरिस्‍पांसबिल के बीच का फर्क क्‍या होगा और उसे कौन तय करेगा. अभी तक दुनिया में शायद ही ऐसा कोई उदाहरण है जहां सरकारें इस काम को कर पाई हों. ज्‍यादातर मौकों पर वह दखलंदाजी करती ही ज्‍यादा नजर आती हैं.

ऐसे में रास्‍ता कहीं न कहीं इंडीविजुअल फ्रीडम और इंडीविजुअल रिस्‍पांसिबिलिटी के बीच से ही निकलकर आएगा. यकीनन लोग चाहेंगे कि टेक्‍नोलॉजी प्‍लेटफार्म्‍स का पॉजिटिव यूज करने वालों डा. देशराज जैसों की संख्‍या ज्‍यादा हो.

वक्‍त के साथ रिस्‍पांसिबल यूज ऑफ टेक्‍नोलॉजी सिर्फ एक टर्म नहीं रह गया है बल्‍कि बाकायदा इसे डिफाइन भी किया जा रहा है. डिजिटल एक्‍सेस, कॉमर्स, कम्‍यूनिकेशन, लिटरेसी, एटिकेट, लॉ, राइट्स एंड रिस्‍पांसिबिलिटीज, सिक्‍योरिटी व हेल्‍थ एंड वेलनेस को इसके हिस्‍सों के तौर पर गिना जाता है. अभी भी हमारी आबादी का बड़ा हिस्‍सा टेक्‍नोलॉजी से अछूता है यानी यह जिनकी पहुंच में है वह उनके मुकाबले प्रिविलेज्‍ड हैं.

इसीलिए डिजिटल एक्‍सेस के साथ डिजिटल लिटरेसी और उसके रिस्‍पांसिबल यूज पर जोर बढ़ता जा रहा है. आखिर कोई भी बंदर के हाथ में उस्‍तरा शायद ही थमाना चाहे. इतना ही नहीं कम से कम अरबन एरियाज में डिजिटल एक्‍सेस जरूरत बनती जा रही है लेकिन उसका सही इस्‍तेमाल कैसे किया जाए इस पर हमारा जोर अभी भी न के बराबर है. अभी हम सिर्फ उसके विविध आयामों और उपयोगों की तरफ ही देख पा रहे हैं. डिजिटल दुनिया के डिजिटल सिटीजन कैसे होंगे इस पर बहस की शुरुआत हो चुकी है लेकिन हर समाज को अपने मूल्‍यों के ताने बाने में चीजों को फिट करना होता है. बहुभाषी और बहुसंस्‍कृतियों वाले अपने देश यह कैसे और कब होगा.

आईनेक्‍स्‍ट में दिनांक 14 फरवरी, 2015 को प्रकाशित
http://inextepaper.jagran.com/438490/INext-Kanpur/14-02-15#page/11/1 
 

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