सीधे मुख्य सामग्री पर जाएं

कुछ कहती हैं 'विंडोज' से झांकती ई-बुक्‍स

चूहा किताबों को यूं कुतर रहा था गोया वह पढ़ने के लिए नहीं कुतरने के लिए बनी हैं. उसके हमले का शिकार मनोहर श्याम जोशी की हरिया हरक्यूलीज की कहानी के हिस्से अलमारी में बेतरतीब बिखरे पड़े थे. उसका अगला निशाना दुष्यंत कुमार की कविताएं थीं. जिन्हें बचाने में हम कामयाब रहे. फिर अचानक ख्याल आया कि एपल के आई पैड, अमेजन के किंडल और बाजार में बिक रहे एंड्रॉयड और विंडोज टैब पर किताबों का डिजिटल अवतार आ जाने के बाद इन चूहों का भविष्य क्या होने जा रहा है. जाहिर तौर पर उन्हें अपने दांतों की कसरत के लिए कोई नया विकल्प  ढ़ूढ़ना पड़ेगा. इंडिया में हर साल बिकने वाली कुल किताबों में से 2-5 प्रतिशत अब ई-बुक होती हैं. देखने में यह आंकड़ा छोटा लग सकता है लेकिन 12000 करोड़ रुपए की इंडियन पब्लिशिंग इंडस्ट्री  जो सालाना 25 परसेंट की रफ्तार से बढ़ रही है में यह बहुतों का ध्यान खींचने के लिए काफी है.

इतना ही नहीं किताबों की बिक्री का बड़ा हिस्सां आपके पड़ोस के बुक स्टॉल से शिफ्ट होकर ऑनलाइन ई-कॉमर्स साइटों पर पहले ही पहुंच चुका है. गौरतलब है कि इंडियन ई-कॉमर्स मार्केट के बड़े हिस्से पर काबिज अमेजन और फ्लिपकार्ट ने अपने बिजनेस की शुरुआत किताबों की बिक्री के जरिए ही की थी.

इंडिया में फैबलेट यानी बड़ी स्‍क्रीन वाले स्मार्टफोन का बढ़ता चलन भी ई-बुक्स के लिए वरदान साबित हो रहा है. एक मशहूर ई-कॉमर्स वेबसाइट के अधिकारी के मुताबिक इंडिया में ई-बुक पढ़ने वालों में से 60 परसेंट उन्हें स्मा‍र्टफोन पर पढ़ते हैं. ऐसे में कोई ताज्जुंब नहीं कि स्मार्टफोन की लोकप्रियता बढ़ने के साथ ही फ्लिपकार्ट और अमेजन जैसे दिग्गढज ई-बुक के अपने संसार को समृद्ध् बनाने में लगे हैं. एक न्यूहजपेपर रिपोर्ट के मुताबिक फ्लिपकार्ट पर साढ़े पांच लाख ई बुक उपलब्‍ध हैं जिनमें से तीन लाख ई-बुक ही हैं यानी उनका कोई प्रिंट वर्जन बाजार में नहीं है. वहीं अमेजन पर 20 लाख ई-बुक हैं. ऐसे में अलग-अलग शहरों में लगने वाले बुक फेयर को भी लेकर चिंता हो सकती है.

हम और आप में से बहुत सारे लोग कभी न कभी किताबों की तलाश में बुक फेयर में भटकते रहे हैं. पुस्तक प्रेमियों के लिए तो यह सालाना जलसे की तरह हैं जिनका कि उन्हेंं साल भर इंतजार रहता है. वहीं डिजिटल दुनिया में एक बिल्कुलल अलग तरह का बुक फेयर शुरू हो चुका है. मजे की बात यह है कि ई बुक रिवॉल्यूशन किसी भी लेखक के लिए अपनी किताबों को दुनिया के किसी भी हिस्से तक पहुंचाना आसान और किफायती बना रहा है.

इसे पहले आईटी प्रोफेशनल और अब फुलटाइम राइटर रसना आत्रेय के उदाहरण से समझा जा सकता है. जिन्होंने पब्लिशिंग के परंपरागत तरीके की बजाय अमेजन की किंडल डायरेक्ट पब्लिश सर्विस की मदद से अपना नॉवेल खुद ही पब्लिश कर डाला. उनकी ई-बुक टेल ए थाउजेंड लाइज इंडिया की बजाय यूएसए, यूके और मैक्सिको में ज्यादा पॉपुलर साबित हुई.
 
इंडियन पब्लिशर्स के कुल व्यवसाय का ई-बुक अभी महज दो से पांच प्रतिशत हैं लेकिन मैच्योर मार्केट्स जहां ई बुक रीडर समेत टैबलेट और स्मासर्टफोन की पहुंच बड़ी आबादी तक है यह 30 प्रतिशत के आसपास है. जहां ई बुक की मदद से अंग्रेजी के लेखक और पब्लिबशर्स तेजी से अपने लिए नया पाठक वर्ग तैयार कर रहे हैं वहीं हिन्दी  व अन्य क्षेत्रीय भाषाएं पीछे छूटती जा रही हैं. एक ओर जहां इन भाषाओं के पब्लिशर्स नए मौकों का फायदा उठाने में पीछे हैं वहीं अंग्रेजी के मुकाबले उनके सामने तकनीकी चुनौतियां भी ज्यादा हैं. ई बुक रीडर और एप हिन्दी  या किसी अन्य क्षेत्रीय भाषा के मुकाबले अंग्रेजी के लिए ज्यादा मुफीद हैं. उम्मीद की जानी चाहिए जैसे जैसे इन भाषाओं की ई बुक की मांग बढ़ेगी तकनीक उसके साथ बेहतर होती चली जाएगी. आखिरकार यहां भी डिमांड और सप्लाेई का सिद्धांत लागू होता है. बहरहाल ई-बुक की बढ़ती लोकप्रियता से चूहों को निराशा जरूर होने जा रही है.

आई नेक्‍स्‍ट में दिनांक 30 नवम्‍बर, 2014 को प्रकाशित
http://inextepaper.jagran.com/384894/INext-Kanpur/29-11-14#page/13/1

टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

पुलवामा टेरर अटैक: आतंकवाद के ख‍िलाफ साथ का सच!

राष्‍ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर की यह लाइनें 'क्षमा शोभती उस भुजंग को, जिसके पास गरल हो, उसको क्या जो दंतहीन, विषरहित, विनीत, सरल हो।'  आज की जियो पॉलिटिक्‍स पर फि‍ट बैठती हैं। पुलवामा टेरर अटैक के बाद दुनिया भर के नेताओं ने संवेदना जताई है। आतंकवाद के खिलाफ भारत के साथ खड़े होने का भरोसा दिलाया है। बहरहाल जब सच के आइने में देखते हैं तो तस्‍वीर उलट नजर आती है। इधर अफगानिस्‍तान से बाहर निकलने को बेचैन अमरीका तालिबान से बात कर रहा है। जो पाकिस्‍तान अफगान समस्‍या की जड़ में है वही इसका ताना-बाना बुन रहा है। इस बातचीत में अफगानिस्‍तान की चुनी हुई सरकार की कोई भूमिका नहीं है। सौदेबाजी जिसे अंतरराष्‍ट्रीय मंचों पर नेगोशियेशन कहकर पुकारा जाता है कतर की राजधानी दोहा में हो रही है। यहां सऊदी अरब की भूमिका पर भी गौर करना जरूरी है जिसकी कतर के साथ इस समय ठनी हुई है। कतर में अमरीकी सैनिक अड्डा है वहीं सऊदी अरब मिडिल ईस्‍ट में अमरीका का सबसे करीबी साझीदार है जिसके लिए डोनाल्‍ड ट्रंप ने ईरान से न्‍यूक्‍ल‍ियर डील तोड़ने में वक्‍त नहीं लगाया। सऊदी अरब और पाकिस्‍तान में हमेशा से करीब ...

इंसान EQ माप रहा है, मशीनें IQ सुधार रही हैं

इंसानों से न सही मशीनों से हमारा रिश्‍ता गहरा हो रहा है। वह दिन दूर नहीं जब महान वैज्ञानिक अल्‍बर्ट आइंस्‍टीन की जगह मशीनों के आईक्‍यू (बौद्धिक स्‍तर) पर बात होगी। इंसान इक्‍यू (भावनात्‍मक स्‍तर) माप रहा है, वहीं मशीनें आईक्‍यू सुधार रही हैं। इंसान उन्‍हें इंटेलीजेंट बनाने में लगे हैं। ओरिजिनल की तलाश छोड़ दुनिया आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस (एआई) पर बहस-मुबाहिसा में उलझ चुकी है। इसमें स्‍टीफन हाकिंग से लेकर बिल गेट्स तक शामिल हैं। सिलिकन वैली से लेकर बंगलुरू तक एआई की आहट सिर्फ सुनी नहीं महसूस की जा सकती है। अभी तक दो चीजें हम इंसानों को मशीनों से अलग करती आई हैं। सीखने व समस्‍याओं को सुलझाने की काबिलियत। अगर मशीनें इस काबिल बन गईं तो दुनिया कहीं इधर से उधर तो नहीं हो जाएगी? फिलहाल ऐसा होता तो नहीं लगता। बहरहाल ऐसे ढेरों सवाल हैं जिनका जवाब एआई के उभार के साथ खोजना लाजिमी हो जाएगा। कोई नौकरियों पर मंडराता खतरा देख रहा है। तो किसी को सामाजिक ताने-बाने के तहस-नहस हो जाने का डर है। हालांकि ऐसे भी लोग हैं जिन्‍हें एआई में तमाम मुश्‍किलों का हल नजर आ रहा है। बीमारियों से लेकर गरीबी तक जि...

कभी कोई अयोध्‍या की भी सुनेगा

अयोध्‍या पर बोलने वाले बहुत हैं लेकिन उससे पूछने वाले कम हैं। वह लोगों की भीड़ को आते-जाते देखती रहती है, जब आवाजें शोर बन जाती हैं तब भी। जब वह सुर्खियों में नहीं होती, उसकी गलियों में खामोशी होती है। कभी-कभार उनकी खामोशी भी सुर्खियां बन जाती है। सन्‍नाटा जिसे देखकर लगेगा कि जैसे वनवास के बाद राम के लौटने का इंतजार है। सुबह सवेरे सरयू के जल में डुबकी लगाकर सिर बाहर निकालता श्रद्धालु या हनुमान गढ़ी पर हाथ से प्रसाद छीनकर भागता बंदर उसकी एक नहीं अनेक छवियां हैं। हमारी पीढ़ी का बड़ा हिस्‍सा टेलीविजन स्‍क्रीन पर सिर्फ एक ही देखता आया है। छवि जिसमें वह बंधा हुआ महसूस करने लगी है, जिसे तोड़कर बाहर आने का उसे रास्‍ता नहीं मिल रहा है। अयोध्‍या राम की है लेकिन राम सिर्फ अयोध्‍या के नहीं हो सकते। यही सोचकर शायद वह आने देती है हुजूम के हुजूम, जिनके आने से सन्‍नाटा टूटता रहता है। लोगों की भीड़ देख वह कभी उत्‍साह से भरती रही है, अब आशंका से भर जाती है। उसके अंदर सवाल जन्‍म लेने लगते हैं। हर बार उसके अंदर उम्‍मीद भी जगती है कि शायद कोई उसके सवालों का जवाब देता जाएगा और यह सिलसिला थम जाएगा। ऐस...