गली से गुजरते हुए टीनएजर्स के समूह के बीच से आता 'प्ले स्टोर खुल गया' का शोर. बायो की ई-बुक डाउनलोड करने के लिए परेशान वो 16-17 बरस का लड़का. ऑटो चालक गोपाल की सीट के सामने विंडशील्ड के पास लगा टैक्सी एग्रीगेटर सर्विस का इंटरनेट व जीपीएस इनेबल्ड स्मार्टफोन. रोजमर्रा की जिंदगी में देखें तो लोग बदलाव को अपनाने के लिए तैयार नजर आते हैं. कभी आपसी बातचीत पर गौर करिएगा. सामने वाला शख्स अकसर आपसे जानना चाहता है कि आपकी जिंदगी में नया-ताजा क्या चल रहा है. यह नया ही सोच में ताजगी और काम में इनोवेशन की राह खोलता है. नए अवसर नई चुनौतियां के साथ आते हैं. यहीं अकसर लोगों के कदम थम जाते हैं.
दुनिया की सबसे तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्था यानी भारत या फिर बतौर इंडिविजुअल इनोवेशन की डगर कांटों भरी है. वैसे गुलाब के फूल कांटों के बीच ही उगते हैं. अकसर लोग सवाल करते हैं कि अमरीका, चीन की तरह भारत के पास अपना गूगल या फेसबुक क्यों नहीं है. अमरीका के पास अगर गूगल, फेसबुक, टि्वटर और अमेजन है तो चीन के पास बायडू, रेनरेन, वायबो और अलीबाबा है. यह इकनॉमी का 'कट, कॉपी, पेस्ट मॉडल' है. चीनी कंपनियों ने अमरीकी इनोवेशंस को सिर्फ कॉपी नहीं बल्कि कहीं बेहतर तरीके से कट, पेस्ट भी किया है. परिणाम सबके सामने है. बायडू दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा सर्च इंजन है. वहीं 'अलीबाबा' जैक मा अमेजन के जेफ बेजोस को तगड़ा कांपटीशन देने का इरादा रखते हैं.
चीन ने अपनी मैन्यूफैक्चरिंग इंडस्ट्री को 'फोटोकॉपी मॉडल' पर ग्रो किया. यही वजह है कि दीवाली पर घर में लक्ष्मी-गणेश पूजन के लिए लाई जाने वाली मूर्तियों से लेकर बाहर दीवार पर टंगी झालर तक चाइनीज हो सकती है. मॉडल बेहद सिंपल है. दुनिया के किसी भी कोने में बनने वाले प्रोडक्ट जैसा ही उत्पाद उससे भी कम कीमत पर बनाना. मॉडल जिसे हम मेक इन इंडिया के जरिए रेप्लीकेट करना चाहते हैं. हर मॉडल की लिमिटेशंस होती हैं. 'कट, कॉपी, पेस्ट' और 'फोटोकॉपी' की भी हैं. जिसे चीन अर्थव्यवस्था की रफ्तार सुस्त होने के साथ महसूस कर रहा है. बहरहाल करीने से अपनाने पर यह दोनों ही तरीके किसी को भी नंबर दो की कुर्सी पर काबिज कर सकते हैं.
नंबर एक इसलिए नहीं क्योंकि अगर आपका कांपटीटर इनोवेटिव है तो वह आगे बढ़ने की दूसरी राह खोज चुका होगा. अमरीकी पूंजीवादी व्यवस्था इनोवेशन की पटरी पर दौड़ती है. जिसमें वक्त और कीमत दोनों खर्च होते हैं. जब तक बायडू हाथ बढ़ाकर गूगल को छूना चाहेगा. तब तक अगला कोशिश करेगा कि अपनी ड्राइवरलेस कार पर सवार होकर आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस के साथ किसी नए सफर पर निकल जाए.
दिल्ली इन दिनों डीजल गाड़ियों पर प्रतिबंध और ऑड-इवेन पर बहस में उलझी है. इसी दौरान अमरीकी कंपनी टेस्ला मोटर्स के सीईओ एलन मस्क बिना किसी बैन या ऑड इवेन के डीजल-पेट्रोल गाड़ियों को सड़कों से गायब कर देना चाहते हैं. यह डिसरप्शन कहलाएगा. कम कीमत वाली बैटरी चालित कार और अमरीका भर में पेट्रोल पंप जैसे चार्जिंग स्टेशन बनाकर कंपनी इस काम को अंजाम देना चाहती है. यहां कीमत इनोवेशन के जरिए नीचे लाई जाएगी. फिर मास प्रोडक्शन के चलते अपने आप नीचे आती जाएगी. मायने साफ हैं कि लीडरशिप पोजिशन इनोवेशन से ही बरकरार रह सकती है.
अब जरा बाकी दुनिया पर गौर फरमाते हैं. वर्ल्ड बैंक के आंकड़ों के मुताबिक इजरायल अपनी जीडीपी (सकल घरेलू उत्पाद) का 4.2 परसेंट रिसर्च एंड डेवलपमेंट (आर एंड डी) पर खर्च करता है. जापान में जीडीपी का 3.5, अमरीका में 2.8, चीन में 2 परसेंट और भारत में 0.8 परसेंट आर एंड डी पर खर्च होता है. अमरीका का जीडीपी चीन का 1.68 गुना है. वहीं चीन का जीडीपी भारत का 5 गुना है. ग्लोबल इनोवेशन इंडेक्स 2015 में भारत का स्थान 81वां है. दुनिया की 100 सर्वाधिक इनोवेटिव कंपनियों की फोर्ब्स लिस्ट में सिर्फ तीन भारतीय कंपनियां आती हैं. दुनिया भर में रिसर्च एंड डेवलपमेंट पर होने वाले खर्च का सबसे ज्यादा हिस्सा फिलहाल कंप्यूटिंग, इलेक्ट्रानिक्स, हेल्थकेयर व ऑटोमोबाइल पर हो रहा है.
इनोवेशन जादू की छड़ी नहीं बल्कि लगातार चलने वाली प्रक्रिया है. अमरीका लीड मार्केट होने के नाते उसके लिए इकोसिस्टम बना चुका है. चीन उस राह पर बढ़ा रहा है. दुनिया के बाकी छोटे-छोटे मुल्क अपनी मुश्किलों का हल इनोवेशन के जरिए निकाल रहे हैं. मौजूदा जल संकट की ही बात करते हैं. लातूर और बुंदेलखंड अचानक सवाल की तरह नहीं खड़े हो गए हैं. यह बरसों तक समस्या की अनदेखी का नतीजा है. मिडिल ईस्ट में एक छोटा देश है इजरायल. जहां पानी की बेहद कमी है. इतनी कि पानी की मांग परंपरागत स्त्रोतों की उपलब्धता से अधिक हो चुकी है. इसके बावजूद वॉटर इंजीनियरिंग और इनोवेशन के बूते वह न सिर्फ अपनी आबादी को पर्याप्त पानी उपलब्ध करवा पा रहा है बल्कि खेती भी हो रही है. इनोवेशन और 'कट, कॉपी, पेस्ट' में से किसी को तो गले लगाना ही होगा.
एक अनुमान के मुताबिक 2020 तक भारत में 11,500 स्टार्ट अप होंगे जिनमें 2,50,000 लोग काम कर रहे होंगे. इसके अलावा वह किसी न किसी रूप में कई करोड़ जिंदगियों को छू रहे होंगे. ऐसे में बिना इकोसिस्टम डेवलप किए उन्हें आगे बढ़ने का मौका नहीं मिलेगा.
16-17 बरस का वह लड़का, ऑटो चालक गोपाल जैसे न जाने कितने भारतीय बदलाव को स्वीकार करने के लिए तैयार बैठे हैं. उन्हें नए अवसरों की तलाश है. वह चुनौतियों को लेकर बेपरवाह हैं. उनका मानना है कि 'अब हवाएं ही करेंगी रोशनी का फैसला, जिस दिए में जान होगी वो दिया रह जाएगा'.
आईनेक्स्ट में दिनांक 8 मई, 2016 को प्रकाशित
http://inextepaper.jagran.com/802183/INext-Kanpur/08-05-16#page/14/1
दुनिया की सबसे तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्था यानी भारत या फिर बतौर इंडिविजुअल इनोवेशन की डगर कांटों भरी है. वैसे गुलाब के फूल कांटों के बीच ही उगते हैं. अकसर लोग सवाल करते हैं कि अमरीका, चीन की तरह भारत के पास अपना गूगल या फेसबुक क्यों नहीं है. अमरीका के पास अगर गूगल, फेसबुक, टि्वटर और अमेजन है तो चीन के पास बायडू, रेनरेन, वायबो और अलीबाबा है. यह इकनॉमी का 'कट, कॉपी, पेस्ट मॉडल' है. चीनी कंपनियों ने अमरीकी इनोवेशंस को सिर्फ कॉपी नहीं बल्कि कहीं बेहतर तरीके से कट, पेस्ट भी किया है. परिणाम सबके सामने है. बायडू दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा सर्च इंजन है. वहीं 'अलीबाबा' जैक मा अमेजन के जेफ बेजोस को तगड़ा कांपटीशन देने का इरादा रखते हैं.
चीन ने अपनी मैन्यूफैक्चरिंग इंडस्ट्री को 'फोटोकॉपी मॉडल' पर ग्रो किया. यही वजह है कि दीवाली पर घर में लक्ष्मी-गणेश पूजन के लिए लाई जाने वाली मूर्तियों से लेकर बाहर दीवार पर टंगी झालर तक चाइनीज हो सकती है. मॉडल बेहद सिंपल है. दुनिया के किसी भी कोने में बनने वाले प्रोडक्ट जैसा ही उत्पाद उससे भी कम कीमत पर बनाना. मॉडल जिसे हम मेक इन इंडिया के जरिए रेप्लीकेट करना चाहते हैं. हर मॉडल की लिमिटेशंस होती हैं. 'कट, कॉपी, पेस्ट' और 'फोटोकॉपी' की भी हैं. जिसे चीन अर्थव्यवस्था की रफ्तार सुस्त होने के साथ महसूस कर रहा है. बहरहाल करीने से अपनाने पर यह दोनों ही तरीके किसी को भी नंबर दो की कुर्सी पर काबिज कर सकते हैं.
नंबर एक इसलिए नहीं क्योंकि अगर आपका कांपटीटर इनोवेटिव है तो वह आगे बढ़ने की दूसरी राह खोज चुका होगा. अमरीकी पूंजीवादी व्यवस्था इनोवेशन की पटरी पर दौड़ती है. जिसमें वक्त और कीमत दोनों खर्च होते हैं. जब तक बायडू हाथ बढ़ाकर गूगल को छूना चाहेगा. तब तक अगला कोशिश करेगा कि अपनी ड्राइवरलेस कार पर सवार होकर आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस के साथ किसी नए सफर पर निकल जाए.
दिल्ली इन दिनों डीजल गाड़ियों पर प्रतिबंध और ऑड-इवेन पर बहस में उलझी है. इसी दौरान अमरीकी कंपनी टेस्ला मोटर्स के सीईओ एलन मस्क बिना किसी बैन या ऑड इवेन के डीजल-पेट्रोल गाड़ियों को सड़कों से गायब कर देना चाहते हैं. यह डिसरप्शन कहलाएगा. कम कीमत वाली बैटरी चालित कार और अमरीका भर में पेट्रोल पंप जैसे चार्जिंग स्टेशन बनाकर कंपनी इस काम को अंजाम देना चाहती है. यहां कीमत इनोवेशन के जरिए नीचे लाई जाएगी. फिर मास प्रोडक्शन के चलते अपने आप नीचे आती जाएगी. मायने साफ हैं कि लीडरशिप पोजिशन इनोवेशन से ही बरकरार रह सकती है.
अब जरा बाकी दुनिया पर गौर फरमाते हैं. वर्ल्ड बैंक के आंकड़ों के मुताबिक इजरायल अपनी जीडीपी (सकल घरेलू उत्पाद) का 4.2 परसेंट रिसर्च एंड डेवलपमेंट (आर एंड डी) पर खर्च करता है. जापान में जीडीपी का 3.5, अमरीका में 2.8, चीन में 2 परसेंट और भारत में 0.8 परसेंट आर एंड डी पर खर्च होता है. अमरीका का जीडीपी चीन का 1.68 गुना है. वहीं चीन का जीडीपी भारत का 5 गुना है. ग्लोबल इनोवेशन इंडेक्स 2015 में भारत का स्थान 81वां है. दुनिया की 100 सर्वाधिक इनोवेटिव कंपनियों की फोर्ब्स लिस्ट में सिर्फ तीन भारतीय कंपनियां आती हैं. दुनिया भर में रिसर्च एंड डेवलपमेंट पर होने वाले खर्च का सबसे ज्यादा हिस्सा फिलहाल कंप्यूटिंग, इलेक्ट्रानिक्स, हेल्थकेयर व ऑटोमोबाइल पर हो रहा है.
इनोवेशन जादू की छड़ी नहीं बल्कि लगातार चलने वाली प्रक्रिया है. अमरीका लीड मार्केट होने के नाते उसके लिए इकोसिस्टम बना चुका है. चीन उस राह पर बढ़ा रहा है. दुनिया के बाकी छोटे-छोटे मुल्क अपनी मुश्किलों का हल इनोवेशन के जरिए निकाल रहे हैं. मौजूदा जल संकट की ही बात करते हैं. लातूर और बुंदेलखंड अचानक सवाल की तरह नहीं खड़े हो गए हैं. यह बरसों तक समस्या की अनदेखी का नतीजा है. मिडिल ईस्ट में एक छोटा देश है इजरायल. जहां पानी की बेहद कमी है. इतनी कि पानी की मांग परंपरागत स्त्रोतों की उपलब्धता से अधिक हो चुकी है. इसके बावजूद वॉटर इंजीनियरिंग और इनोवेशन के बूते वह न सिर्फ अपनी आबादी को पर्याप्त पानी उपलब्ध करवा पा रहा है बल्कि खेती भी हो रही है. इनोवेशन और 'कट, कॉपी, पेस्ट' में से किसी को तो गले लगाना ही होगा.
एक अनुमान के मुताबिक 2020 तक भारत में 11,500 स्टार्ट अप होंगे जिनमें 2,50,000 लोग काम कर रहे होंगे. इसके अलावा वह किसी न किसी रूप में कई करोड़ जिंदगियों को छू रहे होंगे. ऐसे में बिना इकोसिस्टम डेवलप किए उन्हें आगे बढ़ने का मौका नहीं मिलेगा.
16-17 बरस का वह लड़का, ऑटो चालक गोपाल जैसे न जाने कितने भारतीय बदलाव को स्वीकार करने के लिए तैयार बैठे हैं. उन्हें नए अवसरों की तलाश है. वह चुनौतियों को लेकर बेपरवाह हैं. उनका मानना है कि 'अब हवाएं ही करेंगी रोशनी का फैसला, जिस दिए में जान होगी वो दिया रह जाएगा'.
आईनेक्स्ट में दिनांक 8 मई, 2016 को प्रकाशित
http://inextepaper.jagran.com/802183/INext-Kanpur/08-05-16#page/14/1
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